संस्कृति और संस्कार
“संस्कृति और संस्कार”
यो किसा जमाना आ गया लोगो,
संस्कृति और संस्कार रहे ना ।
आज पहले जैसे प्यार रहे ना,
और कृष्ण जैसे यार रहे ना ।।
आज मात पिता की इज्जत कोन्या,
गुरुओ के सम्मान रहे ना ।
घर घर फ़िल्मी पढ़े पत्रिका,
गीता और कुरान रहे ना ।।
मात पिता ने तीर्थ करादे,
वे बेटे सरवण कुमार रहे ना
यो किसा जमाना आ गया लोगो,
संस्कृति और ..,…………………
आज सुभाष चन्दर से देश भक्त ना ।
महाराणा से वीर रहे ना ।
आज करण जैसे दानवीर ना,
और साई जैसे पीर रहे ना ।।
देश की खातिर फाँसी चढ़ जा,
आज भगत सिंह सरदार रहे ना।
यो किसा जमाना आ गया लोगो,
संस्कृति और…………………
आज एकलव्य से शिष्य कोन्या,
द्रोणाचार्य से गुरु रहे ना।
रामचंदर सी मर्यादा कोन्या,
बाल भगत से ध्रुव रहे ना ।।
सब को सदा मिले जहाँ न्याय,
वो विक्रमादित्य से दरबार रहे ना ।
यो किसा जमाना आ गया लोगो,
संस्कृति और ………………..
आज पहले जैसी हवा रही ना ।
ना रहे पहले जैसे पानी ।।
जो अंग्रेजो से लोहा लेले ,
ना रही झाँसी वाली रानी ।।
आज वैलेंटाइन डे को मनावें,
होली, तीज त्यौहार रहे ना ।
यो किसा जमाना आ गया लोगो,
संस्कृति और ………………..
रचनाकार :—-जगदीश गुलिया
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