* संस्कार *
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वैदिक (केवल पद्य में)
शीर्षक – संस्कार
विधा – अतुकांत काव्य
लेखक – डॉ अरुण कुमार शास्त्री
वैदिक विद्या सब पढ़ें निज संस्कृति के साथ ।
मानव जीवन है मिला सदा इसको रखिए याद ।
दिनचर्या की साधना हों चरित्र के पवित्र परिधान ।
मुख से निकलें शुभ वचन हो शिष्टाचार पर ध्यान ।
धर्म अर्थ और काम से जीवन का व्यवहार हो ।
मोक्ष प्राप्ति के लिए वैदिक रीति सम आचार हो ।
वैश्विक नीति ज्ञान की हृदय का होता आलंबन ।
सारे झगड़े छोड़ कर सद्भाव प्रेम प्रतीति प्रतिबंधन ।
लोकाचार के लाभ हैं वैदिक संज्ञा के अनुसार ।
भाई – चारा ही बढ़े कीजिए इसका हमेशा प्रचार ।
सबका साथ सबका विकास सबका हो यदि प्रयास ।
बूंद – बूंद से घट भरे कृषक न होंगे फिर कभी मोहताज ।
कार्य हमारे कर्म के आधार हों धर्म न्याय से प्यार हो ।
नर नारी के मेल से पारिवारिक प्रगति आधार हो ।
साथ मिले जब हाँथ को निर्बल भी चल पड़ता है ।
पंगु शनै – शनै श्रम साध्य करने से गिरि को पार करता है ।
पीड़ा से पीड़ित सभी बीमारी से भी ग्रसित ।
वैदिक सम्मति से मिटेंगे रोग संसारी जनित ।
जीवधारी जन्म से रखता मित्रता की आशा है ।
सबका आदर कीजिए , यही वेद की भाषा है ।
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