संस्कार
संस्कार
परिवर्तन संसार का नियम है
पर संस्कार परिवर्तन ?
जिस संस्कार का हैं ग्रंथो में किया वर्णन
लगाना नहीं चाहिये क्या उन संस्कारो का चन्दन
भरतभूमि की संस्कृती सभ्यता ही तो जिसे करती दुनिया वंदन ,
इन्ही श्रेष्ट संकारो में ही तो करती जग के हदय में स्पंदन,
में कर रही हु उन संस्कृतियों की बात,
जिसे भूल बैठा है मानव आज यहाँ तात,
तनिक भी न प्रेम रहा ना रहा गया नात – बात,
परिवर्तन हुआ फिर भी हे जात -पात,
भूल गए है कई यहाँ अपने माँ – बाप,
कलयुग है या तुमारी सोच बन गई है कालिया सांप I
हम भूल गए ओरो की सेवा करना
इन सबके चलते होगा एकदिन रोना
देश सेवा को भी रखते जहा एक कोना
उनको भी भुला रह गया बस खाना – सोना I
परिवर्तन करना है कीजिये मगर सही दिशा हो,
संस्कारो को किनारे लगा ऐसा न हों ?
संस्कार पुराने अछे थे उनका हास्य क्या ठीक है ?
परिवर्तन करना है कीजिये मगर उनका साथ दीजिये I
Neha Sushil Kumar Dubey
R.K.T College
M.A part – II