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6 Mar 2023 · 1 min read

संस्कार जननी मां

संस्कार जननी मां
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मां, हम सबकी मां
जन्मदायिनी मां, हमारी मां
नौ माह कोख में रख सहेजती
हमें पोषित पल्लवित पुष्पित करती
अपनी जान हथेली पर रख
हमें जन्म देकर दुनिया में लाती
खुद को धन्य मानती।
पालन पोषण कर जीवन का आधार देती,
संस्कार दे जीवन पथ को आसान करती
पर कभी घमंड न करती
हमारी खुशी,सुख, समृद्धि के लिए
जाने क्या क्या जतन करती
दुनिया से लड़ने को तैयार रहती।
हमारी प्रथम पाठशाला ही नहीं
प्रथम शिक्षिका भी मां ही बनती
न नियुक्ति पत्र, न वेतन, न कोई अनुबंध
फिर भी अपने कर्तव्य बड़ी खुशी,
निष्ठा और ईमानदारी से निभाती
सेवानिवृत्ति की चाह नहीं रखती
कभी अवकाश भी कहां चाहती?
जब तक तन में प्राण रहते
सदा हमारी ढाल ही बनती।
धूप छांव, सर्दी गर्मी, वारिश का सामना करने के
अनुभवों का संसार देती
अनुभवों की पोटली से निकाल
कदम कदम पर जीवन जीने के संस्कारों का
सफल ज्ञान देती।
उसके संस्कारों से मिली डिग्री
कभी व्यर्थ नहीं होती,
मां सिर्फ़ मां ही नहीं
संस्कारों की जननी भी है,
तभी तो संसार में ईश्वर से भी अधिक पूज्य भी है,
क्योंकि ईश्वर भी मां के गर्भ से ही पैदा हुआ
मां ने ही पाल पोस कर उसे भी बड़ा किया
ईश्वर ने भी मां के कदमों में सिर झुकाया
और जन्नत का आनंद लिया,
फिर ईश्वर होने का सम्मान पाया
पर मां का स्थान कभी न ले पाया।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
८११५२८५९२१
© मौलिक स्वरचित

Language: Hindi
1 Like · 130 Views
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