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19 Nov 2021 · 1 min read

संस्कार (गीतिका)

गीतिका

“संस्कार”

संस्कार जीवन में देते, अनुशासन, सम्मान,
सशक्त औषधि ये जीवन की, सुख की सच्ची खान।

ममता की घुट्टी हैं समझो, ये शिशु का श्रृंगार,
शुभ लक्षण, शुभ ध्येय यही हैं, जीवन हो आसान।

मातु- पिता का पोषण हैं ये, गुरुजन के सिद्धांत,
संस्कार से हीन मनुज को, मिलता नहीं निदान ।

त्याग द्वेष बन विनयशील जन, करता निज व्यवहार,
संचित पूंँजी ये जीवन की, बनता मनुज महान।

सद्गुण बीजारोपित करके, देते ये उपचार,
परिचय बनते ये मानव का, बनते हैं पहचान।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)

1 Like · 333 Views
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