संस्कार और समाज
समाज में रहने वाले बात करते है नसीहत की,
कर्म भाव दूसरों के देखकर हालत बताते संस्कारों के,
सही गलत की सोचे बिना संस्कारों का चश्मा यह लगाते हैं,
पुरुषों के अधीन इस समाज में पुराने संस्कार का राग अलापते है,
वर्ग जाति में बांटकर लोगों को काम अपने निकालते हैं,
फिर सबको एक रहने की शिक्षा बड़े आराम से देते हैं,
कुल का दीपक लड़के को बताकर कई मासूमों को कोख में मारते हैं,
फिर वंश बढ़ाने के लिए जमाने भर में लड़की की तलाश करते हैं,
वृद्धाश्रम में भीड़ देखकर जमाने को खरी खोटी खूब सुनाते हैं,
पर बात आती जब खुद के मां बाप की तो जिंदगी का बोझ उन्हें समझते हैं,
करके पुराने जमाने को याद नए जमाने को यह कोसते हैं,
पर बात आती जब खुद के संस्कारों की तो समय का हवाला दे सबको चुप यह करते हैं