#रुबाइयाँ//संस्कारों से
शबनम भी मोती-सी चमके , किरणों के व्यवहारों से।
उद्यान यहाँ खिल जाते हैं , पाकर प्रेम बहारों से।
अंदर की ताक़त पहचानों , मानव जीत तुम्हारी हो;
मंज़िल पथ पर चलते जाओ , जुड़कर तुम संस्कारों से।
उत्तम रचना हो मालिक की , फिरते क्यों लाचारों से?
हीन भाव को त्यागो मन से , करलो मुक़्त विकारों से।
रत्नाकर भी भगवान बना , जब खुद को ही पहचाना;
रामायण की रचना कर दी , जुड़कर इन संस्कारों से।
जलन अग्न बन नाश करेगी , दूर भगाए प्यारों से।
दीपक बनके जलना सीखो , दूर रहो अँधियारों से।
प्रेमभाव आदर करवाए , बंधन ये मज़बूत करे;
बंधन-वैभव हितकारी है , जोड़े ये संस्कारों से।
(C)(R)–आर.एस.प्रीतम