संस्कारी पत्नी
संस्कारी पत्नी
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संस्कारी पत्नी अब कहीं नहीं दिखते हैं ,
बस कविता में ही कोई कोई
ऐसी लालसा लिखतें है।
ये पत्नी तो अब लुप्त प्राणी है,
ये सोचना भी अब बेमानी है।
संस्कार भूली बिसरी कहानी है।
अब के युग में तो सब खुद ही सयानी है।
घर के प्रति अब कहां किसी को समर्पण भाव है,
सबपर बस अपने नैहर का प्रभाव है।
पति जो आए पत्नी के झांसे में,
सोचो फस गया शकुनि के पासे में।
बाहर से दिखाए कितना भी प्यार,
पर मन में होगा ही, छुपा शियार ।
कहां किसी में हर कार्य की क्षमता दिखती है ,
शायद ही किसी किसी में ममता दिखती है।
अब सबकी बस बाते मीठी है,
मगर सबका प्लान अनूठी है।
अब तो बाहर पति पत्नी के पर्श ढोते है,
घर आकर अपनी किस्मत पे रोते हैं।
सास बहू के रिश्ते किसी से अनजाना नहीं,
महामूर्ख है वो पति जो इसे पहचाना नहीं।
जिसको मां से मेहनती पत्नी दिखे,
उसके फूटे कर्म विधाता ने ही लिखे।
धन्यवाद्??
स्वरचित सह मौलिक
पंकज कर्ण
कटिहार
संपर्क,, 8936068909