संसार स्वार्थ की रंगभूमि
संसार स्वार्थ की रंगभूमि, इसमें न रंच संशय है।
जो सुनते हैं नेपथ्य कथन, होती उनकी जय-जय है।।
कोई करता अविरल विलाप, कोई उल्लास मनाता।
कोई रो-रो कर हॅंसता है, कोई हॅंस अश्रु बहाता।।
बलिहारी है परम्परा की, हास्य-रुदन मंगलमय है।
संसार स्वार्थ की रंगभूमि, इसमें न रंच संशय है।।
कोई खटता है अहोरात्रि, पर सफल न वह हो पाता।
कोई है भाग्यवान इतना, दुख कभी न पथ में आता।।
कोई रहता भयभीत सदा, होता कभी न निर्भय है।
संसार स्वार्थ की रंगभूमि, इसमें न रंच संशय है।।
कुछ मस्त हमेशा मस्ती में, कुछ रहते बीमार सदा।
कुछ पात्र घृणा के बन जाते, कुछ पाते मृदु प्यार सदा।।
हर अभिनय की अपनी गति-लय, हर अभिनेता मृण्मय है।
संसार स्वार्थ की रंगभूमि, इसमें न रंच संशय है।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी