Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Oct 2024 · 4 min read

संसार एवं संस्कृति

इस ब्रह्मांड में दो विचार हैं एक है संसार और दूसरा है संस्कृति। संसार और संस्कृति दोनों ही भौतिक जगत है और दोनों ही स्प्ष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। जहाँ संसार दिखाने वाली हर चीज है वहीं संस्कृति मानव सभ्यता के इर्दगिर्द पाए जाने वाली भौतिक एवं अभौतिक स्थिति है। संसार की रचना परमेश्वर या श्रष्टि के रचयिता ने की है वहीं संस्कृति की रचना संसार के अंदर ही मनुष्यों ने की है। हालांकि मनुष्यों ने संसार की वस्तुओं से ही अपनी संस्कृति एवं सभ्यता की रचना की है मगर अपनी जरूरतों अनुसार। इसलिए संस्कृति एवं सभ्यता में जो कुछ भी होता है अच्छा या बुरा उसके लिए परमेश्वर जिम्मेवार नहीं है, उसके लिए खुद मनुष्य जिम्मेवार है। इसलिए संस्क्रति एवं सभ्यता के अंदर मिलने वाले दुख एवं सुखों का कारण केवल मनुष्य ही है ना कि परमेश्वर। अतः अगर मनुष्य परमेश्वर की इस कारण से आराधना करता है कि ईश्वर उसकी पूजा से प्रशन्न होकर उसके दुखो को दूर कर देंगे जैसे उसकी नौकरी लगा देंगे, उसकी गृहस्ती एवं व्यवसाय को तरक्की देंगे तो यह एकदम मूर्खता पूर्ण सोच है क्योंकि उन्होंने जो बनाया ही नहीं वो उसके लिए स्वयं को क्यों जिम्मेदार मानें और क्यों उसमें हस्तक्षेप करें। जब मनुष्य ने संस्क्रति एवं सभ्यता की रचना की तो उसने खुद को ईश्वर दूर कर लिया उसकी बातें मनाने से इनकार कर दिया तो फिर अब वह मनुष्यों की संस्कृति में क्यों हस्तक्षेप करेगा।
मगर ईश्वर ने मनुष्यों की संस्कृति में सबकुछ ठीक रहे उसके लिए भी एक व्यवस्था की जिसका अर्थ है कर्मफल सिद्धांत। अर्थात जो मनुष्य जैसा कर्म करेगा वैसा ही फल पाएगा और उन किए कर्मो को मनुष्य ईश्वर की पूजा आराधना करके नष्ट नहीं कर सकता हाँ ईश्वर की पूजा आराधना करके मनुष्य स्वयं को मानवी संस्क्रति से दूर करके खुद को पुनः ईश्वर की नैसर्गिक इच्छा के अनुरूप ढाल सकता है, जिस प्रकार जानवर ईश्वर की इच्छा अनुरूप खुद को रखते हैं। इसी कारण जानवर जीवन पर्यंत सुख एवं दुख की भावनाओं से हमेशा दूर रहते हैं और केवल जीवन जीते हैं। बिल्कुल यही बात गीता में कृष्ण कहते हैं कि, “निश्वार्थ कर्म कर और फल की चिंता ना कर”। जो कि मनुष्य संस्क्रति में रहते हुए इस तरह सोचना एवं करना असंभव है।
ईश्वर नहीं चाहता कि वह सभ्यता या संस्क्रति की रचना करे क्योंकि उसकी कोई जरूरत ही नहीं है केवल मनुष्यों ने उसकी जरूरत बना रखी है।
अगर अपने रिश्ते के बीच कोई गलत व्यवहार करता है, गलत आचरण करता है तो ईश्वर उसे कोई श्राप नहीं देगा क्योंकि मनुष्यों द्वारा बनाई गई संस्क्रति एवं सभ्यता के लिए नियम कानून भी मनुष्यों ने ही बनाए हैं ना कि ईश्वर ने। इसलिए कोई समाज में कितना दुराचरण करे, क्रूरता करे वह ईश्वर के पाप का भागी नहीं बनता बल्कि अपने कर्मों के फल का भुक्तभोगी बनता है। जैसे रावण अगर श्रीराम की पत्नी माता सीता का अपहरण ना करता तो शायद ही भगवान राम उसे मारते और वह वैसे ही जीता रहता जैसे पहले जीता चला आ रहा था। मगर उसने अपने से ज्यादा शक्तिशाली व्यक्ति की पत्नी को चुराया तो उसे अपने कर्मो का फल मिला ना कि ईश्वर ने उसे मारा हो या श्राप दिया हो।
इसलिए मनुष्य समाज में जो कुछ भी घट रहा है अच्छा या बुरा उसके लिए ना तो परमेश्वर किसी को दंड देगा और ना ही किसी को आशिर्वाद देगा। भले ही किसी भी व्यक्ति ने कितने भी शुभ कर्म किए हो परमेश्वर कभी उसकी सहायता नहीं करते और जब उसकी मृत्यु होनी होती है तो होती है जब उसके जीवन में दुख आने होते हैं तो आते हैं। इससे फर्क नहीं पड़ता कि मानव संस्क्रति के लिए उसका क्या योगदान था। बिल्कुल यही स्थिति बुरे लोगो के लिए होती है। कुछ बुरे लोग जीवन भर बुरा कर्म करते हैं मगर आनंद से जीते हैं और हम सोचते रहते हैं कि ईश्वर उनके साथ बुरा क्यों नहीं करता? जबकि सच तो यह है कि ईश्वर के लिए ना कुछ बुरा है ना कुछ भला है उसके लोए तो सब कुछ एकसमान है जैसे ईश्वर को ना तो शेर से कोई शिकायत जो हिरन को मारकर खाता है और ना ही हिरन से कोई हमदर्दी जो जीवन भर शेर का शिकार बनता है। यह तो संसार है ईश्वर ने उसकी रचना उसी प्रकार ही की है। इसलिए मनुष्य सभ्यता या संस्क्रति में ईश्वर का कोई हस्तक्षेप नहीं फिर चाहे आप उसकी पूजा करो या ना करो। अगर हाँ पूजा करोगे तो ईश्वर इंसान को मनुष्य संस्क्रति से दूर कर उसे अपनी नैसर्गिक संसार से जोड़ देगा, जिस प्रकार बाबा जी और आध्यत्मिक लोग जुड़े रहते हैं।

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 53 Views
Books from सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
View all

You may also like these posts

सेवा निवृत काल
सेवा निवृत काल
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
क्यों छोड़ गई मुख मोड़ गई
क्यों छोड़ गई मुख मोड़ गई
Baldev Chauhan
मधुर स्मृति
मधुर स्मृति
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
कुंडलिया
कुंडलिया
sushil sarna
गीत पिरोते जाते हैं
गीत पिरोते जाते हैं
दीपक झा रुद्रा
3379⚘ *पूर्णिका* ⚘
3379⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
ज़िम्मेवारी
ज़िम्मेवारी
Shashi Mahajan
प्रकृति की गोद
प्रकृति की गोद
उमा झा
विचार ही हमारे वास्तविक सम्पत्ति
विचार ही हमारे वास्तविक सम्पत्ति
Ritu Asooja
आजादी /कृपाण घनाक्षरी
आजादी /कृपाण घनाक्षरी
Rajesh Kumar Kaurav
वार्ता
वार्ता
meenu yadav
अगर आपको सरकार के कार्य दिखाई नहीं दे रहे हैं तो हमसे सम्पर्
अगर आपको सरकार के कार्य दिखाई नहीं दे रहे हैं तो हमसे सम्पर्
Anand Kumar
मां
मां
MEENU SHARMA
*हैं जिनके पास अपने*,
*हैं जिनके पास अपने*,
Rituraj shivem verma
" सब किमे बदलग्या "
Dr Meenu Poonia
बचपन बनाम पचपन
बचपन बनाम पचपन
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
तेरे संग बिताया हर मौसम याद है मुझे
तेरे संग बिताया हर मौसम याद है मुझे
Amulyaa Ratan
दोहे
दोहे
Rambali Mishra
हमको भी कभी प्रेम से बुलाइए गा जी
हमको भी कभी प्रेम से बुलाइए गा जी
कृष्णकांत गुर्जर
वो ख़्वाहिशें जो सदियों तक, ज़हन में पलती हैं।
वो ख़्वाहिशें जो सदियों तक, ज़हन में पलती हैं।
Manisha Manjari
आसमां पर घर बनाया है किसी ने।
आसमां पर घर बनाया है किसी ने।
डॉ.सीमा अग्रवाल
अकारण सेकेंडों की बात मिनटों व घण्टों तक करने वाले न अपना भल
अकारण सेकेंडों की बात मिनटों व घण्टों तक करने वाले न अपना भल
*प्रणय*
एक और द्रौपदी (अंतःकरण झकझोरती कहानी)
एक और द्रौपदी (अंतःकरण झकझोरती कहानी)
गुमनाम 'बाबा'
" दास्तां "
Dr. Kishan tandon kranti
हमको मिलते जवाब
हमको मिलते जवाब
Dr fauzia Naseem shad
** दूर कैसे रहेंगे **
** दूर कैसे रहेंगे **
Chunnu Lal Gupta
पुरुष_विशेष
पुरुष_विशेष
पूर्वार्थ
*मनु-शतरूपा ने वर पाया (चौपाइयॉं)*
*मनु-शतरूपा ने वर पाया (चौपाइयॉं)*
Ravi Prakash
" नैना हुए रतनार "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
फेसबुक वाला प्यार
फेसबुक वाला प्यार
के. के. राजीव
Loading...