संसाधन का दोहन
डोल रही एक,
एक दिन धरा प्रचंड,
थर थर कांप रहा था,
भूमंडल का हर अंश ।
वन उपवन हैरान हुए सब,
उजड़ गया क्या कोई वन ?
जल स्रोत खोजने लगे ,
कहा जन्मा नया मरुस्थल ?
पर्वत मालाये गिनने लगी,
ढह गया क्या पर्वत का क्रम ,
जग के जीवों मे से,
क्या कम हो गये जीवधारी के वंश।
घने मेघ ने आकर बोला,
प्राकृतिक संसाधन के दोहन का सच,
भू-गर्भ से जो नोच रहे थे,
बन रही है उनकी आज कब्र।
शहरीकरण और औद्योगीकरण,
कर रहे बिन विचारे संसाधन दोहन,
भूत भविष्य को परख करे बिना,
लालच मे बनाया गगन चुंबी ईमारत।
उचित उपयोग सही जरूरत,
हर मानव को करना है प्रयोग,
जागरूकता अभियान खनिजो का,
रखना है दिमाग़ मे सबको।
बुध्द प्रकाश,
मौदहा ,
हमीरपुर।