रिटायरमेंट का लाभ लोकतंत्र के लिए नई चुनौती
राजनीती का स्तर इतना गिर चूका है कि वह आमूल चूल सभी प्रकार से अपनी लोकप्रियता और सत्ता नही गबाना चाहती । हो सकता है आपको मेरी बात अतिश्योक्ति या फिर अच्छी ना लगे किन्तु सत्य भी है। आप वर्तमान समय में देख ही सकते है कि जो सरकारी अधिकारी रिटायर होता है वह तुरन्त ही किसी अन्य सरकारी संस्था का सदस्य बना दिया जाता है या फिर पार्टी का नेता/कार्यकर्ता बनाकर उसे संसद या विधानसभा में किसी न किसी प्रकार से बैठा दिया जाता है , एक बड़ा पद देकर , रिटायरमेंट के गिफ्ट रूप में। फिर चाहे इसमें जनरल वी. के सिंह, मेजर राज्यवर्धन सिंह राठौर, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, गिजरात कैडर के IAS मुर्मू साहब ,जनरल विपिन रावत और भी तमाम ।
हां यह बात सत्य है कि ये रिटायर अधिकारी शिक्षित,सुसक्षित एवं सरकारी नियम कामो में निपुण होते है और देश के विकास के लिए ऐसी ही गोग्यताओ की जरूरत भी है किंतु जरूरी नही है कि इन्ही योग्यताओं के स्वामी केबल ऐसे ही रिटायर अधिकारी है बल्कि देश में ऐसे लोग हजारो की संख्या में मिल जाएंगे जो इस पक्षपात की बजह से अपना स्किल जनता के सामने प्रदर्शित नही कर पाते।
इसके विपरीत इस प्रकार की नियुक्ति और चयन से देश की अन्य संस्था के कार्यरत अधिकारियो में राजभक्ति का गलत संदेश घर करता है जिससे संविधान और जनता के प्रति उनका कर्तव्य निस्वार्थ ना रहकर राजभक्ति प्रेरित हो जाता है क्योंकि रिटायमेंट के बाद कोई भी अधिकारी अपना पद खोने के साथ साथ उस प्रतिष्ठा को भी खो देता है जो उसको पद पर रहते हुए मिलती थी। वही पद जनता में समाज में उसका सम्मान और दबदबा भी था। इसके साथ साथ रिटायरमेंट के बाद व्यक्ति हर महीने मिलने बाली निश्चित आय भी खो देता है।
इन सभी के साथ साथ व्यक्ति को रिटायमेंट के बाद मिलने बाला एकाकीपन द्वारा स्वयं को प्रताणित करने का डर लगा होता है ।
इन सभी मानसिक स्थति और मनोवैज्ञानिक स्थिति का लाभ सरकार उठाकर ,इन बड़े बड़े अधिकारियो को रिटायमेंट के बाद पुनः लाभकारी पद गिफ्ट के रूप में देती है। जिससे कार्यरत अधिकारियों में एक संदेश जाता है कि राजभक्ति में संलग्न रहो अगर रिटायरमेंट के बाद स्वयं को इस लाभ से लाभान्वित करना है तो।
जिसका सीधा सा अर्थ होता है कि कार्यरत ज्यादातर अधिकारी अपने सभी निर्णय और आदेश सरकार के आदेश और एजेंडा से जोड़ देते है। फिर चाहे जनता परेसान हो या संस्था का स्वरुप बिगड़े या फिर संवैधानिक पवित्रता। और फिर बड़े बड़े अधिकारी अपने कर्तव्यों से ज्यादा राजभक्ति पर ध्यान देना प्रारम्भ कर देते है। अतः संवैधानिक संस्थाओं की निस्पक्ष रूप से कार्य करने की प्रक्रिया सीधे तौर पर प्रभावित होती है। रिटायरमेंट के बाद मिलने बाले इन लाभों को सोचकर कोई भी संस्था ऐसा ना कोई काम करेगी ना आदेश देगी जिससे उसकी छवि सरकार की नजरों में गिरे या सरकार विरोधी जाय भले ही वह आदेश/काम संविधान की आत्मा को बचाये रखने के लिए ही क्यों ना हो ।
अतः इस प्रक्रिया से हानि जहाँ एक तरफ भारत के संवैधानिक लोकतान्त्रिक स्वरुप को होती है वही पार्टी के सच्चे कार्यकर्ता को भी हानि उठानी पड़ती है।
जब इसप्रकार रिटायरमेंट के बाद गिफ्ट पद/सदस्यता दी जाती है तो ऐसे कार्यकर्ता जो वर्षो से अपनी पार्टी के लिए ईमानदारी पूर्वक अपने क्षेत्र/प्रान्त/देश स्तर पर कार्य कर रहे होते है उनको मिलने बाला मौका उनसे छीन जाता है , जिस चयन जिस उम्मीद के लिए उन्होंने अपनी पार्टी के लिए अपना तन, मन, धन दिया होता है वही पार्टी उनके इस संघर्ष का लाभ उनको ना देकर किसी बड़े अधिकारी को गिफ्ट रूप में परोस देती है जिससे ऐसे कार्यकताओं को निराशा हाथ लगती है। और सत्य तो यह है कि ये जमीन से जुड़े कार्यकर्ता किसी संवैधानिक पद और संस्था को सीधे तौर पर जनता से ज्यादा जोड़ पाएंगे इन रिटायर अधिकारियो से ज्यादा क्योकि ये अधिकारी भीड़ और जमीन से अलग रहकर काम करने बाले अधिकारी थे ना कि जमीन से जुड़कर आम जनता की समस्याओं को महसूस करने बाले कार्यकर्ता ।
इसलिए यह जरूरी हो गया है कि लोकतंत्र की वास्तविक शक्ति को जनता तक पहुचाने के लिए एक पार्टी कार्यकर्ता या किसी अन्य योग्य व्यक्ति को ऐसे पद दिए जाने चाहिए ना कि रिटायर होने बाले बड़े बड़े अधिकारियो को अन्यथा भारत देश में सरकार- प्रसाशन की ऐसी संस्थागत मशीनरी खड़ी हो जाएगी जो जड़ जमीन से तो अलग होगी ही साथ में उसका तोड़ भी निकालना आसान नही होगा। और अगर ये रिटायर अधिकारी निस्वार्थ जनता की सेवा करना ही चाहते तो ये लालच में आकर ये गिफ्ट पद प्राप्त ना करते।
इसलिए ऐसी नियुक्तियों को रोकने के लिए संवैधानिक उपाय जरूर किए जाने चाहिए अन्यथा सरकार और रिटायर अधिकारी की संवेदना हींन मशीनरी खड़ी हो जाएगी और लोकतंत्र की जगह भारत में संवैधानिक राजतंत्र खड़ा हो जाएगा जिसमें मानवीयता कम होगी और भृस्टाचार की गुंजाइश ज्यादा होगी।
इसलिए जरूरी है कि पार्टी के ही जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं को ही आगे बढ़ाना चाहिए उनके संघर्ष को इन्तजार में पार्टी सेक्रिफिकेशन में बदलने की बजाय । यही लोग लोकतंत्र के सच्चे वाहक सिद्ध होंगे ना कि बिहार SP लिपि सिंह और हाथरस के DM प्रवीन कुमार लक्सर जैसे निर्मम अधिकारी ।