संवेदना
संवेदना एक शब्द
मजबूर कर देता
गढ़ जाता अल्फाजों को
कुछ सुलझे
कुछ अनसुलझे पलों को
पीछे होती हैं यादें
उन क्षणों की
महसूस किया था
जिन पलों को कभी हमनें—-
उपरांत एक क्षण
याद आते वो पल
ऊंगली मेरी पकड़
चलना सीखा था तुमने
फिर हंसकर छुप जाते
पीछे मेरे ही तुम
ढ़ूंढ़ पाने का सकून
स्वर्णिम उन अहसासों को
कलमबद्ध कर रही
महसूस किया था
जिन पलों को कभी हमने—-
नजरों से दूर क्या हुए
चश्मा चढा लिया आंखो पर
बिखर गई थी दुनिया मेरी
तुम्हें खबर थी लेकिन
महसूस न कर पाये तुम
परवाज थी ऊंची
जमीं को न देख पाए तुम
अफसोस अल्फाज भी
बयां नहीं कर पा रहे
महसूस किया था
जिन पलों को कभी हमनें—-
©सरिता खोवाला