“संवेदना”
कितनी संवेदनायें उग आती हैं पल भर में ,
कुछ मुठ्ठी छींट देती हूँ गीले कागज़ों पर ,
और अंकुरित होकर जब ये फूट पड़ती हैं ,
अनावृत हो जाती है जाने कितनी कल्पनायें.
…निधि…
कितनी संवेदनायें उग आती हैं पल भर में ,
कुछ मुठ्ठी छींट देती हूँ गीले कागज़ों पर ,
और अंकुरित होकर जब ये फूट पड़ती हैं ,
अनावृत हो जाती है जाने कितनी कल्पनायें.
…निधि…