संवेदना
संवेदनाओं के गहरे समुद्र में
ज़ब मन हिलोरे ख़ाता है
मनोभावों की ऊँची लहरों में
ज़ब नयन भीग भीग जाते हैं
तब सुनाने को अपनी व्यथा
समझाने को जीवन कथा
ये दिल आतुर हो जाता है
ढूंढे इस भीड़ में कोई अपना
पर सब व्यर्थ हो जाता है
ज्वार भाटा विचारों का ज़ब
उथल पुथल अथाह मचाता है
शांत रहें या चीखे ये मन
अंतर्द्वंद शोर मचाता है
हैं संदेश ए ज़माने तुझको
संवेदनायें नहीं कमज़ोर बहुत
जो रोता है वो साहसी है
वेदना की लहरों से जो
तैर बाहर निकल आता है
ना हारा है ना डरता है
मानवीय संवेदनाओं की
सुनहरी भट्टी में तपकर
फूल सा कोमल ह्रदय
सुंदर मानुष बन जाता है।