संवेदना
भावनाओं का अंबार है मानव,
राग, द्वेष, हिंसा का गुबार है मानव।
खंगाले जरा खुद के भीतर तो,
संवेदनाओं का विस्तार है मानव।
भरते हुए विभिन्न प्रकार की भावनाएं,
उकेरा मानव का पुतला ईश्वर ने।
और भी ऊँचा उठा तब मानव,
फूटी जब संवेदना उसके उर से।
फूटे निर्झर पथराई आंखों से ऐसे,
प्रेम का सागर बहे मरुस्थल जैसे।
संवेदना हो साथ जीवन पथ पर,
तो है जीवन सफल फकीरी में भी।