संवेदना…2
शीर्षक – संवेदना
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हमारे मन में संवेदना होती हैं।
हमारे साथ तुम्हारी संवेदना रहतीं हैं।
हम तुम संग एक संवेदना रखते हैं।
इश्क और मोहब्बत में संवेदना होती है।
राधा और मीरा के मन की संवेदना हैं।
बस हमें पढ़ कर संवेदना बता सकते हैं।
जिंदगी और जीवन की राह में संवेदना हैं।
संवेदना ही संसार में हम सभी रखते हैं।
मानव के साथ जानवर भी संवेदना कहते हैं।
एक सच तो यही बस हम संवेदना रखते हैं।
हम सबके साथ विचार संवेदना न कहते हैं।
बस मानव और मानवता की संवेदना हैं।
स्वार्थ और फरेब मन में संवेदना रखते हैं।
सच संवेदना की परिभाषा अपनी सोच हैं।
हम और हमारी जिंदगी ही संवेदना कहतीं हैं।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र