संवेदना
शीर्षक – संवेदना
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संवेदना ही तो हमारी एक सहयोग की राह होती हैं।
अपने और पराए की दृष्टि अपनी कहती हैं।
ह्रदय की व्यवस्था और संवेदना ही तो होती हैं।
तेरे मेरे संग साथ समय की संवेदना होती हैं।
सच और हकीकत में पीड़ा और सच के साथ होती हैं।
एक दूसरे की पूरक तो संवेदना होती हैं।
सच तो हमारी आपकी प्रतिक्रिया एक संवेदना होती हैं।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र