संवेदना सहज भाव है रखती ।
न मरती है संवेदना ,
न मिटती है संवेदना,
शांत भले ही हो,
पल भर मे जगती है संवेदना।
न जाने कब और किस पल ?
छू ले किसी का मन,
दर्पण सी अनुभूती दिखा कर,
प्रतिबिम्ब से जुड़ जाए संवेदना।
कैसे भी हो?
इन्द्रियों के भाव को परख कर,
गंध रंग रूप दृश्य भाव को चख कर,
संवेदना जीवन्त कर देती है मृत पल।
दुःख से भी बनती,
सुख से भी बनती इसकी,
एक रिश्ते को बुनती ,
संवेदना सहज भाव है रखती ।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।