संवेदना मनुष्यता की जान है।
* संवेदना मनुष्यता की जान है
संवेदनशील मनुष्य सजीवता
का प्रतीक है।
संवेदनविहीन मनुष्य निर्जीविता
का प्रतीक है।
मनुष्य की इंसानियत, सोच समझ, ही
करती उसे, अन्य जीव से अलग
समझदारी, वफादारी, सहयोगात्मक
भावना, मन में रखना, अपने तुम,
मनुष्य जन्म को सार्थक,
करना तुम,
संवेदना हो हर रिश्ते में हर संबंध में,
संवेदात्मक रवैया रखकर,
आगे को बढ़ाना तुम।
संवेदना एक अद्भुत एहसास है।
मानवता की गहरी छाप है।
सुख-दुख को समझने का भान है।
संबंधों को दृढ़ करने का मंत्र है।
सहानुभूति, सहयोग, रखकर
सामाजिक समरसता,
बढ़ाने की क्षमता है।
संवेदनाएं चुंबकीय कार्य,
करती है रिश्तो में।
संवेदनाएं चुंबक की तरह,
जोड़े रखती है रिश्तो को।
संवेदना हमारे तन मन को
धनवान बनाती है।
दयावान हृदय, पवित्र मन,
देता है, अंतरात्मा को खुशी।
वह खुशी में भी,
हजारों दुआएं होती हैं।
जो निश्चल सहानुभूति से
प्राप्त होती है।