संवेदना एवं समाज
संवेदना एवं समाज
©डॉ.अमित कुमार दवे, खड़गदा
समाज एवं संवेदनशीलता दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। समाज संवेदनहीन को यह स्वीकार्य नहीं और संवेदना रहित समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती। संवेदना है वहाँ समाज की जीवंतता है और जहाँ पर समाज है वहाँ संवेदनाओं का संचरण स्वतः होता दिखता है। समाज से तात्पर्य सम्यक् जिनका आज है, जो पूर्व के अनुभवों पर तैयार हुआ है ,विकास की गति को जो प्राप्त है- वही वास्तव में आज का समाज है और जो आज यथार्थ के यथार्थ में जीवन को यापित करता है। कल को आज मैं निर्मित होता देखता है, वही वास्तव सामाजिक है, वही सही मायनों में संवेदनशील है।
समाज में संवेदनाएँ व्यवहार एवं सम विचार को बनाए रखने के साथ संचालित किए रखने का कार्य करती हैं। संवेदनाएँ समाज को आपस में जोड़े हुए रखती हैं। एक दूसरे के सहयोग हेतु तत्पर,एक दूसरे के कष्ट में कष्ट को भोगने वाले समाज को संवेदी समाज के रूप में देखा जा सकता है। समाज की संवेदनाएँ समाज को उर्ध्वगामी बनाती हैं।समाज को सामाजिक बनाने में संवेदनाएँ आधारशीला साबित होती हैं।
एक की वेदना जब सब की वेदना के रूप में परिलक्षित होती है तब संवेदना का वास्तविक स्वरूप सम्मुख होता है।
समाज एवं संवेदनाएँ जब परस्पर पूरक हो सहयोगी भाव से संचारित एवं प्रसारित होती हैं तो समाज वास्तव में मानवता की खेती कर रहा होता है । वह मानव जीवन के मायने गढ़ रहा होता है। जीवन के मायनों को समझ रहा होता है। मानव जीवन की जो यथार्थता को समझ कर आगे की पीढ़ी के लिए नवीन पृष्ठभूमि तैयार कर रहा होता है। संवेदना रहित समाज समाज कहलाने योग्य कभी नहीं हो सकता।
संवेदना युक्त समाज एवं समाज के जन संवेदनाओं से युक्त हों ऐसी हर समाज से,हर शिक्षा की व्यवस्था से, हर परिवार से अपेक्षा… समाज एवं समाज के जनों को सामाजिक बनाना, संवेदनाओं से युक्त बनाना आज की अनिवार्यता है। संवेदना शून्य होता समाज आज किस तरफ जा रहा है? यह आप और हम सबके लिए विचारने का बिंदु है!
संवेदनशील समाज का निर्माण करना हमारे लिए कार्य क्षेत्र का एवं व्यवहार क्षेत्र का बिंदु है। हमें इस पर सोचना चाहिए,विचारना चाहिए एवं कार्य करना चाहिए ।संवेदना युक्त समाज न केवल राष्ट्र की अपितु संपूर्ण विश्व की आवश्यकता है।
सस्नेह..
©डॉ.अमित कुमार दवे, खड़गदा