संवेदनाओं में है नई गुनगुनाहट
संवेदनाओं में है नई गुनगुनाहट
संवेदनाओं में है नई गुनगुनाहट
चीरती अनैतिक रिश्तों का दंभ
बिखेरती चेहरों पर
विश्वास की मुस्कान
मानवता में संजोती /बिखेरती
इंसानियत की खुशबू
दिलों से दिलों को जोड़ती
अनजान रिश्तों को एक नाम देती
” जियो और जीने दो ” का
मर्म बन उभरती
अश्रुओं से पूर्ण नेत्रों में
स्वप्न, साहस और कल्पना की
नई विरासत का संचार करती
जिन्दगी को “ अहा जिन्दगी “ की ओर
मुखरित कर जीने का भाव जगाती
दिलों की पीर का मर्म बन
इंसानियत के स्पर्श का समंदर जगाती
कभी किसी मासूम के रुदन में
कोमल स्पर्श बन मुस्कान हो जाती
कभी किसी के बिखरे सपनों में
एक आस बन उभर आती
“ दंभ “ को अपनी पावन मुस्कान से
पिघला देने का सामर्थ्य लिए
एक चिर – परिचित मुस्कान का
अंदाज बयॉ करते रूबरू हो जाती
“ संवेदना “ कोमल मन के
किसी कोने मैं स्वयं को पुष्ट करती
मानवता को मानवीयता का मर्म सिखाती
जीवन को जीने का मर्म होती “संवेदना “
अनिल कुमार गुप्ता अंजुम