संवेदनशील मुद्दों पर सृजनात्मक प्रहार करता सिनेमा -आलेख़
शीर्षक – 【 ” संवेदनशील मुद्दों पर सृजनात्मक प्रहार करता
सिनेमा ” 】
समाज में व्याप्त बुराईयों को फ़िल्मकार, सिनेमा के माध्यम से जनसाधारण के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास निरंतर करता आ रहा है । सिनेमा का प्रारंभ से ही दर्शकों पर विशेष प्रभाव रहा है । विख़्यात फ़िल्मकारों ने सिनेमा के माध्यम से अनेक विवादास्पद परंतु संवेदनशील विषयों पर अपनी बात रखने की क़ोशिश की है । शोमैन राज कपूर ने अपनी अधिकांश फ़िल्मों में बहुत से सामाजिक मुद्दों को दर्शकों के समक्ष शानदार तरीक़े से प्रस्तुत करने का प्रयास किया । उन्होंने ” प्रेमरोग ” फ़िल्म में वैधव्य पश्चात नारी की व्यथा एवं सामाजिक उलाहना का सटीक प्रस्तुतिकरण किया है तो “प्रेमग्रंथ ” में अस्पृश्यता एवं वर्ण व्यवस्था पर प्रहार किया है ।
“सत्यम शिवम सुंदरम ” में नारी के चेहरे की कुरूपता को संजीदगी से रूपहले पर्दे पर चित्रित किया है ।
सिनेमा को शिक्षित एवं निरक्षर, दोनों वर्ग देखता है इसलिये सिनेमा का विस्तार भी व्यापक है । निर्देशक मेहबूब खान ने
” मदर इंडिया ” फ़िल्म में एक माँ के अदम्य साहस एवं जीवटता को बखूबी पेश किया है । सिनेमा में निर्देशक की मानसिकता यह होती है कि वह एक बेहतरीन कहानी के साथ साथ समाज को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास भी करे और किसी संवेदनशील मुद्दे पर अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति दे ।
दीपा मेहता ने अपनी फ़िल्म ” फ़ायर ” के ज़रिए एक विवादास्पद विषय का चयन किया जो महिला समलैंगिक संबंधों पर केंद्रित था ,हालांकि यह एक संवेदनशील विषय था जिसमें दो महिलाएं ,अपने अपने पतियों की उपेक्षा का शिकार होकर अंतरंग संबंध बना लेती हैं । आज समलैंगिकता को कानूनी समर्थन के पश्चात ” बधाई दो ” जैसी फ़िल्म सिनेमाघरों में आती है जिसमें लैवेंडर मैरिज यानि गै एवं लेस्बियन की शादी के बारे में दिखाकर समाज को न सिर्फ चौंकाया बल्कि दर्शकों का ध्यान एक संवेदनशील मुद्दे की और मोड़ा । इराक़ और कुवैत के मध्य हुए गल्फ़ युद्ध पर आधारित फ़िल्म ” एयरलिफ़्ट ” ने भी दर्शकों को तत्कालीन समय की युद्ध विभीषिका पर चिंतन करने को विवश कर दिया । सिनेमा ने बहुत से अनछुए पहलुओं को छूने का प्रयास किया है । सूरज बड़जात्या जैसे लोकप्रिय निर्देशक बालीवुड में पारिवारिक एवं नैतिक मूल्यों को स्थापित करने वाले ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी फ़िल्मों ने संयुक्त परिवार के एकीकरण एवं बंंटवारे की व्यथा को बताया है ।
कुल मिलाकर सिनेमा ,संवेदनशील विषयों को जीवंत करने का सशक्त माध्यम रहा है जिसके ज़रिये फ़िल्मकार ,समाज से जुड़ने का प्रयास करता है ।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी ( शायर एवं स्तंभकार )
©काज़ीकीक़लम
28/3/2 ,अहिल्या पल्टन ,इकबाल कालोनी
इंदौर ,मध्यप्रदेश