संवाद
मिली ये जिंदगी है तो
हरदम खुश दिल रहो।
सबसे हिलमिल रहो।
सबकी सुनो और अपनी भी कहो।।
खुश रहोगे तो खुशियाँ बढ़ेंगी।
गमजदा रहोगे तो बढ़ेंगे और भी गम।
बताओ कैसे होंगे गम ये कम।।
सुनो बताते हैं हम।।।
कोई सुख-दुख हो तो
घर परिवार मित्रों से साझा करो।
बात दिल की कहने से मत डरो।
बात करो, संवाद करो।
मगर झगड़ा फसाद मत करो।
संवाद से मिलता समाधान है।
संवाद से मानव की शान है।।
मिटते मतभेद हैं।
घुप-चुप रहने से बढ़ जाते जो।
मनभेद हैं।।
अगर न हो आपस में संवाद।
होने लगता है अवसाद।।
पनपने लगते विषाद।।
बढ़कर बनते झगड़ा फसाद।।
बढ़ जातीं जो दूरियाँ।
न रहें मजबूरियाँ।।
आओ।
आपसी बात चीत से नजदीकियां बढ़ाओ।
झगड़ा फसाद नहीं ।
संवाद बढ़ाओ।
मूक रहने से दर्द और गम बढ़ता है।
धीरे धीरे सर पर चढ़ता है।।
जब कुछ कहोगे।
तभी तो लोग सुनेंगे, समझेंगे।
समाधान भी निकालेंगे।
सोचते क्यों हो ये
केवल मेरी अपनी समस्या है।
किसी से क्या कहना।
बात मन में ही रखना।।
वो क्या जानेंगे।
समझेंगे क्या मेरी समस्या।
उनने कौन सी की है तपस्या।।
कैसे करेंगे समाधान।
तो सुनो श्रीमान।।
ये दुख और दर्द।
उतार और चढ़ाव।
सभी की जिंदगी में आते हैं।
एक नहीं
बार-बार आते और जाते हैं।
किसी को पहले तो किसी को
बाद में सताते हैं।।
कुछ न कुछ सबका अनुभव है।
और अनुभव ने बताया है
करो संघर्ष।
सदा सहर्ष।।
कभी हो जाता अनजाने में ही मनमुटाव।
मूक रहने से और भी बढ़ जाता तनाव।।
अत: संवाद करते रहो।
हँसाते हँसाते रहो।
सदा मुस्कुराते रहो।।
आपसी मनमुटाव मिटाते रहो।
एक दूसरे की खुशियाँ बढ़ाते रहो।।
कर के याद।
करते रहो सब मिल
आपस में संवाद।।
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कौशलेंद्र सिंह लोधी ‘कौशल’