संवरती है संवार लो,
संवरती है तो संवार लो,
संभलती है तो संभाल लो,
वरन गुजर तो जानी ही है,
मत तुम मन में अवसाद लो.
कडी नहीं है घडी, संचालक तुम हो.
बदलने की क्षमता है,तो संभाल लो,
भूख है तो खा लो,नींद आये तो सो,
नित्य तो नित्य ही है, उसे पहचान लो.
प्रकाश है, ध्वनि भी,दोनों तरंग है ,
गंध है,स्पर्श है,सुस्वादु पहचान लो.
विचार पहचान है,तुम्हारे वजूद की.
चाहे जिससे काम लो और दाम लो.
चाहिए तुम्हें वंश स्त्री पुरुष सहवास हो.
मुख खाना संयम से गुदा से मल त्याग हो.
हस्त-पादा प्रगति इंद्रियां समझ से काम लें.
मन सबका अधिपति, द्रष्टा समझ भाव दें.
हंस परख पारखी, हंसा प्रकृति अस्तित्व से.
जिनकी सत्ता आपणी, सो काहे व्यर्थ गुलाम
भ्रम संशय आसक्ति उपजे ज्ञान अज्ञान अज्ञात
मन बाधक मन साधन मन साधक मन पावणा.
महेन्द्र सिंह हंस