संवत्सर चलता है
मेरा मन तेरे मन से आगे ऐसे अक्सर चलता है
जैसे अंग्रेजी कैलेंडर से आगे संवत्सर चलता है
मन की मानो तो जान सकोगे
मेरे मन की गहराई
इसी भरोसे पट सकती है
सोच – समझ के बीच खाई
मन में है ठहराव कहाँ ये तो रह-रह कर चलता है
मेरा मन तेरे मन से आगे ऐसे अक्सर चलता है
जैसे अंग्रेजी कैलेंडर से आगे संवत्सर चलता है
भूल गए हो भले मुझे पर
मैं मनोभाव में जिन्दा हूँ
उड़कर आता हूँ उसी ठौर
मैं जमीं से जुदा परिंदा हूँ
मेरे मन का पुष्पकविमान भाव को भरकर चलता है
मेरा मन तेरे मन से आगे ऐसे अक्सर चलता है
जैसे अंग्रेजी कैलेंडर से आगे संवत्सर चलता है
खुशियों की तय तारीख़ नहीं
ये तो मन पर ही निर्भर है
मन के भाव से ही है बहता
खुशियों का मृदु निर्झर है
खुशियां उसी को मयस्सर हैं जो आगे डटकर चलता है
मेरा मन तेरे मन से आगे ऐसे अक्सर चलता है
जैसे अंग्रेजी कैलेंडर से आगे संवत्सर चलता है
-सिद्धार्थ गोरखपुरी