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27 Dec 2020 · 1 min read

‘ संरक्षक बनाम भक्षक ‘

हाँ ! मैने भी देखा है एक वट वृक्ष विशाल

अचंभित थी देख उसकी विशालता कमाल ,

अपने आप को कुछ ज़्यादा सघन कर रहा था

धीरे – धीरे वो हमको अंधेरों से ढ़क रहा था ,

हमारा पनपना वो रोज देख रहा था

ज्यादा पनपने से हमें रोक रहा था ,

देखने वाले सोचते वो हमारा संरक्षक है

कैसे कहें की यही तो हमारा भक्षक है ,

लोग रोज आते उसकी छांव में बैठते

उसकी शीतल छांव में खुद को ताज़ा करते ,

कहते भला हो उसका जिसने ये बरगद लगाया

लेकिन किसी ने निगाह नही हम पर फिराया ,

हम जाने कब से उसी आकार में पड़े हैं

दो – चार पत्तियों के अलावा और नही बढ़े हैं ,

लोग दोष हमें देते हैं की हममें क्षमता नही

कोई भी ले जाकर हमें कहीं और रोपता नही ,

अब हमने बरगद की नियत समझ ली है

इसके ही नीचे पनपने की ज़िद ली है ,

पत्तों से छन कर किरणें जो पार हो रही हैं

उसी से हमारे जीवन की सांसे आ रही हैं ,

धीरे ही सही हम भी विशाल वृक्ष बनेंगें

फल कुछ ज्यादा पत्ते थोड़ा कम रखेंगें ,

हमारी तरह औरों को पनपने में ना देर हो

सूरज की किरणों के साथ रोज़ नई सबेर हो ।

स्वरचित एवं मौलिक

( ममता सिंह देवा , 03/12/2020 )

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 219 Views
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