संबंधो में अपनापन हो
खंडित सा लग रहा है संसार ये
अस्त-व्यस्त जीव-जगयापन वो
अपने लगे नीचा दिखाने अपनो को
कैसे कहें सम्बधो में अपनापन हो।
देख एक-दुसरे को भाता नही यहाँ
किसी का उठना, और आगे बढ़ना
होड़ लगी रहती है अब तो यहाँ
अपनो की ही टाँगे काटने को
कौन समझे कौन दे ज्ञान इनको
कैसे कहें संबंधो में अपनापन हो।
समझने को यंहा कोई तैयार नहीं
सब अपने को समझदार है
सोच बदली नही जाएं किसी की
सोच में दिख रहा अभिमान है
भुला दिया है जिसने इन्सान वो
कैसे कहें संबधो में अपनापन हो।
जीवन बसर पर सबका ध्यान है
दिख रहा सामने इन्सान जो
बिक रहा दुसरे की बात पर वो
भुला रहा विशेषकर अपनो को
दिखा रहा अपना बावलापन वो
कैसे कहें सम्बधो में अपनापन हो।
संजय कुमार “सन्जू”
शिमला हिमाचल प्रदेश