*संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ : दैनिक रिपोर्ट*
संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ : दैनिक रिपोर्ट
दिनांक 6 मई 2023 शनिवार प्रातः 10:00 बजे से 11:00 बजे तक
कल तक हमने रामचरितमानस के बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड तथा सुंदरकांड का पाठ किया।
आज लंकाकांड का आरंभ होकर दोहा संख्या 35 तक का पाठ हुआ। आज के पाठ में श्रीमती शशि गुप्ता, श्रीमती मंजुल रानी तथा श्री विवेक गुप्ता की मुख्य सहभागिता रही ।
कथा-सार
समुद्र पर रामसेतु का निर्माण, रामेश्वरम की स्थापना, सेना सहित भगवान राम समुद्र के उस पार गए, अंगद रावण संवाद हुआ
कथा-क्रम
भगवान राम के प्रताप के स्मरण से नल और नील ने रामसेतु का निर्माण कर लिया। जामवंत ने उन दोनों भाइयों से कहा:-
रामप्रताप सुमिरि मन माहीं। करहु सेतु प्रयास कछु नाहीं।। (लंका कांड दोहा संख्या भूमिका)
अर्थात मन में राम के प्रताप का स्मरण करो। सेतु निर्माण में प्रयास कुछ नहीं करना पड़ेगा। यही हुआ। वानर और भालू उठा-उठा कर पत्थर और पेड़ देते गए। रामसेतु तैयार हो गया। रामसेतु के संबंध में भगवान राम ने कहा :-
मम कृत सेतु जो दर्शनु करिही। सो बिनु श्रम भवसागर तरिही।। (लंकाकांड दोहा संख्या 2)
अर्थात मेरे द्वारा रचित सेतु का जो दर्शन करेगा वह बिना श्रम ही भवसागर से तर जाएगा। इसी समय भगवान ने शिवलिंग की स्थापना करके समुद्र के तट पर रामेश्वरम तीर्थ बना दिया :-
लिंग थाप विधिवत करि पूजा (लंकाकांड दोहा चौपाई संख्या 1)
अर्थात शिवलिंग की स्थापना करके विधिवत उसकी पूजा की।
राम सेतु का निर्माण नल और नील ने किया। लेकिन यह भगवान राम की ही करामात है कि उनके प्रताप से सिंधु अर्थात समुद्र पर पाषाण अर्थात पत्थर तैर गए । तुलसी लिखते हैं :-
श्री रघुवीर प्रताप ते, सिंधु तरे पाषाण (दोहा संख्या 3)
तुलसी यह भी कहते हैं :-
बांधा सेतु नील नल नागर। रामकृपा यश भयउ उजागर।। (चौपाई संख्या दो)
वास्तव में सेतु का निर्माण एक अद्भुत घटना है। जब रावण ने सुना तो वह भी आश्चर्य कर उठा। लेकिन अपनी पत्नी मंदोदरी के समझाने पर भी उस पर कोई असर नहीं हुआ। वह अभिमान में चूर था। काल उसके सिर पर खड़ा था किंतु वह मूर्खतापूर्वक अपने महल में अप्सराओं के नृत्य देखने में लगा हुआ था:-
बाजहिं ताल पखावज वीणा। नृत्य करहिं अप्सरा प्रवीणा।। (चौपाई संख्या 9)
रावण के अभिमान को चूर्ण करते हुए राम ने एक ही बाण से रावण का छत्र, मुकुट और मंदोदरी के कर्णफूल अर्थात ताटंक काट कर गिरा दिए।:-
छत्र मुकुट ताटंक तब, हते एक ही बाण (लंकाकांड दोहा संख्या 13)
भगवान राम की कार्यशैली सब की सलाह लेते हुए तथा सबको आदर देते हुए कार्य करने की थी। इसलिए जामवंत की सलाह पर अंगद को रावण के पास दूत बनाकर भेजा गया। अंगद ने रावण को उसकी सभा में निर्भय होकर यह सलाह दी कि तुम भगवान राम की शरण में जाकर उनसे अपनी रक्षा की प्रार्थना करो। वह तुम्हें क्षमा अवश्य कर देंगे:-
प्रनतपाल रघुवंश मणि त्राहि-त्राहि अब मोहि (लंकाकांड दोहा संख्या 20)
अर्थात रघुवंश शिरोमणि शरणागत के रक्षक भगवान राम से त्राहि-त्राहि अर्थात रक्षा करने के लिए प्रार्थना करो। लेकिन रावण के पास अपने विगत पुण्यों का अभिमान था। उसने अंगद से कहा :-
शूर कवन रावण सरिस, स्वकर काटि जेहिं सीस (लंकाकांड दोहा संख्या 28)
अर्थात ऐसा कौन शूरवीर होगा जिसने रावण के समान अपने हाथों से काटकर अपने शीश चढ़ाए हों ? रावण का घमंड उसके सिर पर चढ़कर बोल रहा था ।
इसी बीच अंगद ने अपना पैर धरती पर टिका दिया और कहा कि अगर तू मेरा चरण हिला कर दिखा दे, तो रामचंद्र जी वापस लौट जाएंगे। रावण के दरबार में अंगद का पैर हिलाने वाला कोई नहीं मिला पाया। जब रावण अंगद का पैर पकड़ने के लिए आगे बढ़ा तो अंगद ने उससे कहा कि मेरे पैर पकड़ने से तेरा उद्धार नहीं होगा। भगवान राम के पैर पकड़ ।
उधर मंदोदरी रावण को समझा रही है :-
रामानुज लघु रेख खिंचाई। सोउ नहिं लॉंघेहु असि मनुसाई (चौपाई संख्या 35)
अर्थात राम के अनुज अर्थात छोटे भाई ने एक लघु रेखा खींच दी थी आप उसे भी नहीं लॉंघ पाए। यह आपका बल है ? यहां पर तुलसीदास जी लोक-विख्यात लक्ष्मण रेखा का उल्लेख मंदोदरी के मुख से कर रहे हैं। जबकि लक्ष्मण द्वारा सीता को कुटी में अकेला छोड़ कर जाते समय उनके द्वारा कोई “लक्ष्मण रेखा” खींचने का उल्लेख अरण्यकांड में नहीं मिलता।
विगत पुण्यों के अभिमान ने रावण का पतन कर दिया। जो कुछ उसने अर्जित किया, वह अभिमान और वासना ने उससे छीन लिया। जब व्यक्ति का पतन होता है, तब वह अहंकार में डूबना आरंभ कर देता है और तब उसे डूबने से कोई नहीं बचा सकता। पत्नी,भाई, पुत्र आदि केवल सलाह ही दे सकते हैं। उस सलाह को मानने की दिशा में कदम उठाने का कार्य तो संबंधित व्यक्ति को ही करना पड़ता है। शुभचिंतकों की सलाह जो नहीं मानता, वह सर्वनाश की ओर अग्रसर होता चला जाता है। रावण की यही स्थिति है।
यह बात सदा ध्यान रखनी चाहिए कि अभिमान उनको ही होता है, जिन्होंने कुछ अर्जित किया है। अतः उपलब्धि प्राप्त होने पर अभिमान से बचते हुए विनम्रता और सबसे प्रेम का आश्रय लेना ही उचित और कल्याणकारी मार्ग है।
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लेखक : रवि प्रकाश (प्रबंधक)
राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय (पीपल टोला), निकट मिस्टन गंज, रामपुर, उत्तर प्रदेश
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