Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 May 2023 · 8 min read

*संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ: दैनिक रिपोर्ट*

संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ: दैनिक रिपोर्ट

3 मई 2023 बुधवार प्रातः 10:00 से 11:00 तक (प्रत्येक रविवार को अवकाश)

आज किष्किंधाकांड संपूर्ण हुआ। कल 4 मई 2023 बृहस्पतिवार को मतदान के कारण अवकाश रहेगा । किष्किंधाकांड के बाद सुंदरकांड आता है ।
अतः परसों 5 मई 2023 शुक्रवार को प्रातः 10:00 से सुंदरकांड का पाठ आरंभ होगा। इस बार समय एक घंटे से कुछ अधिक लग जाएगा। 5 अप्रैल 2023 से संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ हम लोगों ने आरंभ किया था।
आज के पाठ में स्वतंत्रता सेनानी एवं रामपुर की सनातन रामलीला के संस्थापक स्वर्गीय श्री देवी दयाल गर्ग के पौत्र श्री पंकज गर्ग तथा रामपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक स्वर्गीय श्री बृजराज शरण ‘वकील साहब’ की पुत्रवधू श्रीमती शशि गुप्ता की मुख्य सहभागिता रही। श्रीमती मंजुल रानी का विशेष सहयोग रहा।

कथा-सार

किष्किंधा कांड में पहली बार हनुमान जी से रामचंद्र जी की भेंट होती है। सुग्रीव से मैत्री कर के राम बाली का वध करते है। सीता जी का पता लगाने के लिए हनुमान जी को अपनी शक्ति का आत्मबोध होता है।

कथा-क्रम

किष्किंधाकांड वास्तव में हनुमानजी के उस पराक्रम की भूमिका है, जो आगे चलकर हमें सुंदरकांड में देखने को मिलती है। भगवान राम से हनुमान जी की पहली भेंट किष्किंधा कांड में होती है । राम लक्ष्मण के साथ सीता की खोज में “ऋष्यमूक पर्वत” पर पहुंचते हैं, जिसका पता उन्हें शबरी ने बताया था। ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव रहता है। हनुमान जी उसके साथ हैं। राम लक्ष्मण को जब सुग्रीव ने दूर से देखा तो वह उनकी तेजस्विता और शक्ति को देखकर भयभीत हो गया। ऐसे में हनुमान जी को सुग्रीव ने राम और लक्ष्मण की वास्तविकता का पता लगाने के लिए भेजा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह दोनों व्यक्ति बाली के भेजे हुए तथा मुझ से युद्ध करने के लिए तो नहीं आए हैं ।
हनुमान जी ने सुग्रीव द्वारा दिए गए कार्य को अत्यंत कुशलतापूर्वक संपन्न किया। सर्वप्रथम उन्होंने एक ब्राह्मण का वेश बनाया। भगवान राम से वन में विचरण करने का कारण पूछा और जब कारण पता चल गया तब हनुमान रामचंद्र जी के अवतारी स्वरूप को पहचान गए। चरणों में गिर पड़े। रामचंद्र जी ने उन्हें हृदय से लगा लिया।
हनुमान जी की भक्ति अनन्य थी। इस अनन्य भक्ति के संबंध में भगवान राम ने एक बात कही :-
सो अनन्य जाके असि मति न टरई हनुमंत। मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत।। (किष्किंधा कांड दोहा संख्या 3)
अर्थात हनुमान ! तुम मेरे अनन्य भक्त हो और अनन्य भक्त वही होता है, जो सदैव इस बात को स्मरण रखता है कि वह सेवक है और यह संसार उसके स्वामी भगवान का ही रूप है। हनुमान को प्रथम दृष्टि में ही राम ने अपने अनन्य भक्त के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि तुम मुझे लक्ष्मण से भी दुगने प्रिय हो :-
तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना (चौपाई संख्या दो)
हनुमान जी राम और लक्ष्मण को अपनी पीठ पर बिठाकर सुग्रीव के पास ले गए, जहां राम ने सुग्रीव से मैत्री की।
मैत्री के समय भगवान राम ने सुग्रीव से अच्छे और बुरे मित्र के बारे में जो कहा, वह संसार में सार्वकालिक सदुपदेश बन गया। अच्छे मित्र के गुणों पर प्रकाश डालते हुए भगवान राम ने कहा :-
कुपथ निवारि सुपंथ चलावा। गुण प्रगटै अवगुणहि दुरावा।।
दूसरी ओर बुरे मित्र के संबंध में भगवान राम ने सुग्रीव को बताया :-
आगे कह मृदु वचन बनाई। पीछे अनहित मन कुटिलाई।। (किष्किंधा कांड चौपाई संख्या 6)
अर्थात कुपथ अथवा बुरे रास्ते से सुपंथ अथवा अच्छे रास्ते पर जो ले जाता है, वह सच्चा मित्र है। जो गुणों को प्रकट करता है तथा अवगुणों को छुपा लेता है, वह सच्चा मित्र है। दूसरी ओर झूठा मित्र अथवा बुरा मित्र वह होता है जो मुॅंह-देखी मीठी-मीठी बातें करता है और पीठ-पीछे मन में कुटिलता भरते हुए अपने तथाकथित मित्र का अहित चाहता है। व्यक्ति को सच्चे मित्र और झूठे मित्र के अंतर को समझते हुए जीवन में सच्चे मित्रों को धारण करना चाहिए तथा झूठे मित्रों से अपना पीछा छुड़ा लेना चाहिए।
इस मैत्री के फलस्वरुप युद्ध में सुग्रीव और बाली के युद्ध में बाली का वध एक बाण द्वारा वृक्ष की आड़ में छुपकर भगवान राम ने किया। बाली ने प्रश्न उठाया कि मुझे छुपकर क्यों मारा ? राम कहते हैं जो व्यक्ति छोटे भाई की पत्नी, बहन, पुत्रवधू और पुत्री पर कुदृष्टि डालता है; उसके मारने पर कोई पाप नहीं लगता :-
ताहि वधे कछु पाप न होई। (चौपाई संख्या 8)
बाली की मृत्यु के पश्चात उसकी पत्नी तारा को भगवान राम ने वैराग्य उपदेश के द्वारा अनेक प्रकार से सांत्वना दी। समझाया कि यह अधम शरीर क्षिति, जल, पावक, गगन और समीर के द्वारा बना है। शरीर जीवित अभी तक है, जब तक उसमें जीव रहता है। लेकिन जो जीव है, वह अजर अमर और नित्य है। उसके लिए कैसा रोना ?:-
क्षिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम शरीरा।। प्रगट सो तन तव आगे सोवा। जीव नित्य केहि लगि तुम्ह रोवा।। (किष्किंधाकांड चौपाई संख्या 10)
बाली के वध के बाद भगवान राम ने सुग्रीव को राजा और बाली के पुत्र अंगद को युवराज बना दिया। उस समय वर्षा ऋतु चल रही थी । समय आने पर वर्षा ऋतु बीत गई। शरद ऋतु आ गई । लेकिन सुग्रीव के कान में जूं नहीं रेंगी ।
सुग्रीव की निष्क्रियता और उदासीनता को देखते हुए हनुमान जी की सक्रिय और सकारात्मक भूमिका हमें देखने को मिलती है। एक तरफ राम और लक्ष्मण क्रुद्ध हो रहे हैं तो दूसरी तरफ हनुमान जी भी यह समझ रहे हैं कि किष्किंधा का राज्य मिलने के बाद सुग्रीव ने भगवान राम के कार्य को विस्मृत कर दिया है। उन्होंने तरह-तरह से सुग्रीव को भगवान राम के बल का स्मरण दिलाया। :-
इहॉं पवनसुत हृदय विचारा। राम काज सुग्रीव बिसारा।। (चौपाई संख्या 18)
परिणाम यह निकला कि लक्ष्मण जी के क्रोधित होकर सुग्रीव के पास आने से पहले ही सुग्रीव ने सीता जी की खोज के कार्य को आरंभ कर दिया।
केवल इतना ही नहीं जब लक्ष्मण जी क्रोधित होकर किष्किंधा नगर में आए, तब सुग्रीव ने एक बार पुनः हनुमान जी की बुद्धिमत्ता का ही उपयोग किया । उसने कहा कि हनुमान जी ! आप तारा को साथ में ले जाकर किसी प्रकार लक्ष्मण जी को विनती करके समझाने का कार्य करें :-
सुनु हनुमंत संग ले तारा । करि विनती समझाउ कुमारा।। (चौपाई संख्या 19)
यह हनुमान जी की ही चातुर्यपूर्ण विनम्र भूमिका थी, जिसके कारण लक्ष्मण जी का क्रोध शांत हो गया । हनुमान जी ने ही लक्ष्मण जी को यह बताया कि दूत चारों दिशाओं में सीता जी की खोज के कार्य में जा चुके हैं:-
पवन तनय सब कथा सुनाई। जेहि विधि गए दूत समुदाई।। (चौपाई संख्या 19)
सीता जी की खोज में यों तो सभी वानर तत्पर और तल्लीन थे, लेकिन उनके बीच में हनुमान जी के प्रतिभा और बल को भगवान राम कुछ अलग ही महसूस कर रहे थे। समुद्र लॉंघने का कार्य तो बहुत बाद का है, लेकिन जब हनुमान जी भी इस बारे में सुनिश्चित नहीं थे कि उन्हें समुद्र लॉंघना है; तभी भगवान राम ने उन्हें अपने हाथ की अंगूठी निकाल कर दे दी थी। :-
करमुद्रिका दीन्हि जन जानी (अरण्यकांड चौपाई संख्या 22)
अर्थात भगवान ने अपना जन अथवा सेवक जानकर हनुमान जी को अपने हाथ की मुद्रिका अर्थात अंगूठी दे दी। भगवान राम ने हनुमान जी से यह भी कहा:-
बहु प्रकार सीतहि समुझाएहू। कहि बल विरह वेगि तुम्ह आएहु।। (अरण्य कांड चौपाई संख्या 22)
अर्थात सीता जी को मेरा बल और विरह-वेदना भली प्रकार से समझाने के बाद तुम वेगपूर्वक अर्थात बहुत तेजी के साथ मेरे पास लौट कर आ जाना।
जब कोई व्यक्ति किसी अन्य के माध्यम से अपनी बात कहीं तक पहुंचाना चाहता है, तब उसके लिए एक अत्यंत सशक्त और उचित माध्यम की वह तलाश करता है । सीता जी को खोजने के कार्य के साथ-साथ सीता जी तक अपनी बात पहुंचाना और फिर तुरत-फुरत लौटना -इन सब कार्यों के लिए भगवान राम ने सब वानरों के मध्य केवल हनुमान जी पर भरोसा किया । तभी तो अपने हाथ की अंगूठी हनुमान जी को उस समय प्रदान कर दी, जब समुद्र पार करने की भूमिका के लिए हनुमान जी तैयार भी नहीं हुए थे । तात्पर्य यह है कि प्रभु अपने सेवक की सामर्थ्य जानते हैं। सेवक भले ही अपरिचित हो लेकिन प्रभु अनुरूप परिस्थितियों को निर्मित करते रहते हैं। भगवान राम के हृदय में हनुमान जी की शक्ति को लेकर भारी विश्वास था। यह विश्वास सब प्रकार से सही सिद्ध हुआ।

जब जटायु के भाई संपाती ने अपनी अद्भुत दृष्टि से यह देखा कि सीता जी “त्रिकूट पर्वत” पर स्थित लंका के अशोक वन में शोकमग्न बैठी हुई हैं तथा यह बताया कि सौ योजन समुद्र को पार करके ही सीता जी का पता लंका में जाकर लगाया जा सकता है, तब प्रश्न यह खड़ा हुआ कि समुद्र को पार करके लंका कौन जाए ? वानर दल में एक से बढ़कर एक सूरमा थे। लेकिन समुद्र पार कर सकने का सामर्थ्य किसी में नहीं था । यहां तक कि हनुमान भी चुप बैठे हुए थे। जामवंत ने एक बार फिर हनुमान जी की शक्ति और सामर्थ्य को पहचाना और पहचानने के बाद हनुमान जी को उनके बल की याद दिलाई :-
का चुप साधि रहेहु बलवाना ( किष्किंधा कांड चौपाई संख्या 29 )
अर्थात हनुमान जी ! तुम चुप्पी साध कर क्यों बैठे हुए हो ? तुम्हारे अंदर तो अपार बल भरा हुआ है ! ऐसा कौन सा काम है, जो तुम्हारे लिए असंभव है ?
कवन सो काज कठिन जग माही। जो नहीं हुई तात तुम पाही।। (चौपाई संख्या 29 किष्किंधा कांड)
जब जामवंत ने हनुमान जी को उनकी शक्ति का स्मरण दिलाया, उनके भीतर चेतना भरी तथा प्रेरणा प्रदान करने का कार्य किया; तब हनुमान जी को अपना बल स्मरण हो आया । वह सिंहनाद करने लगे और उन्हें महसूस होने लगा कि वह तो समुद्र को खेल-खेल में ही लॉंघ सकते हैं:-
सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहिं लाघउॅं जलनिधि खारा।। (किष्किंधाकांड चौपाई संख्या 29)
ऐसा प्रायः होता है। लोक-जीवन में कई बार चुनौती सामने आती है और हम उस चुनौती का बीड़ा उठाने में हिचकिचाते हैं, चुप रह जाते हैं। तब ऐसे समय में कोई जामवंत हमारी शक्ति को पहचान कर हमें प्रेरित करता है और कहता है कि तुम इस कार्य को कर सकते हो। सीता जी की खोज के कार्य में जहां हनुमान जी की प्रमुख भूमिका रही, वहीं जामवंत की प्रेरणा भी कम प्राणवान नहीं रही। न जामवंत हनुमान जी को प्रेरित करते और न हनुमान जी अपनी अद्भुत शक्ति और सामर्थ्य को स्मरण कर पाते । प्रभु के कार्य कठिन अवश्य होते हैं, लेकिन एक बार हम अपने मन में ठान लें कि हमें अमुक कार्य संपन्न करना है; तब प्रभु की कृपा से हमारी शक्ति बढ़ती चली जाती है और एक दिन हम उस कार्य को सफलतापूर्वक संपन्न कर लेते हैं। किष्किंधा कांड समुद्र के तट पर हनुमान जी की शक्तियों के जागरण का अध्याय है। प्रभु की कृपा से हम सब अपनी सात्विक शक्तियों को जगा सकने में समर्थ सिद्ध हों, ऐसी ईश्वर से कामना है।
—————————————-
लेखक : रवि प्रकाश (प्रबंधक)
राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय (टैगोर स्कूल), पीपल टोला, निकट मिस्टन गंज, रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

282 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
सत्य वह है जो रचित है
सत्य वह है जो रचित है
रुचि शर्मा
गीत
गीत
Shiva Awasthi
4514.*पूर्णिका*
4514.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
"बेचारा किसान"
Dharmjay singh
मन में संदिग्ध हो
मन में संदिग्ध हो
Rituraj shivem verma
* यौवन पचास का, दिल पंद्रेह का *
* यौवन पचास का, दिल पंद्रेह का *
DR ARUN KUMAR SHASTRI
अक्षर-अक्षर हमें सिखाते
अक्षर-अक्षर हमें सिखाते
Ranjeet kumar patre
दोस्ती
दोस्ती
Dr.Pratibha Prakash
Bad in good
Bad in good
Bidyadhar Mantry
स्वतंत्रता दिवस की पावन बेला
स्वतंत्रता दिवस की पावन बेला
Santosh kumar Miri
दुखा कर दिल नहीं भरना कभी खलिहान तुम अपना
दुखा कर दिल नहीं भरना कभी खलिहान तुम अपना
Dr Archana Gupta
ये दिल उनपे हम भी तो हारे हुए हैं।
ये दिल उनपे हम भी तो हारे हुए हैं।
सत्य कुमार प्रेमी
It’s all a process. Nothing is built or grown in a day.
It’s all a process. Nothing is built or grown in a day.
पूर्वार्थ
*अब लिखो वह गीतिका जो, प्यार का उपहार हो (हिंदी गजल)*
*अब लिखो वह गीतिका जो, प्यार का उपहार हो (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
ग़ज़ल एक प्रणय गीत +रमेशराज
ग़ज़ल एक प्रणय गीत +रमेशराज
कवि रमेशराज
जाने के बाद .....लघु रचना
जाने के बाद .....लघु रचना
sushil sarna
*📌 पिन सारे कागज़ को*
*📌 पिन सारे कागज़ को*
Santosh Shrivastava
कामनाओं का चक्रव्यूह, प्रतिफल चलता रहता है
कामनाओं का चक्रव्यूह, प्रतिफल चलता रहता है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
*नुक्कड़ की चाय*
*नुक्कड़ की चाय*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
तुमसे मोहब्बत है
तुमसे मोहब्बत है
Dr. Rajeev Jain
इस बार
इस बार "अमेठी" नहीं "रायबरैली" में बनेगी "बरेली की बर्फी।"
*प्रणय*
ସକାଳ ଚା'
ସକାଳ ଚା'
Otteri Selvakumar
बिखरा ख़ज़ाना
बिखरा ख़ज़ाना
Amrita Shukla
महापुरुषों की सीख
महापुरुषों की सीख
Dr. Pradeep Kumar Sharma
कितनी निर्भया और ?
कितनी निर्भया और ?
SURYA PRAKASH SHARMA
यायावर
यायावर
Satish Srijan
उदास देख कर मुझको उदास रहने लगे।
उदास देख कर मुझको उदास रहने लगे।
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
दोहे -लालची
दोहे -लालची
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
"खुदा रूठे तो"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...