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31 Jan 2021 · 1 min read

संध्या

शीत की संध्या सुनहरी धूप से ,
दे रही आभास कोमल स्नेह का ।
शनैःशनैः लेती विदा मद्धिम हुई ,
सकुचती सी पथ लिए निज गेह का ।

स्वच्छ निर्मल गगन नील विशाल में ,
तारकों के दल बिछाते रोशनी ।
और आता देखकर रजनी पति को ,
मुदित हैं नक्षत्र पाकर चाँदनी ।।

ओढ़कर ज्यों निशा श्यामल नव वसन
स्वप्न नयनों में दमकती देह का ।
शनैःशनैः लेती विदा मद्धिम हुई ,
सकुचती सी पथ लिए निज गेह का ।।

छा गई माधुर्य की मोहक छटाएँ ,
घुल गई वातावरण में गंध सी ।
सुप्त तन में स्वांस और प्र – स्वांस की
सरित मंथरता लिए हो मंद सी ।।

ओस जल जीवन सुधा के साथ में
ऊर्जित होकर छिटकता मेह का ।
शनैःशनैः लेती विदा मद्धिम हुई ,
सकुचती सी पथ लिए निज गेह का ।।

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 235 Views
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