संध्या वंदन……
तपती धूप को भगाता हुआ सूर्यास्त
सूर्यास्त हुआ
वह चिपचिपाती गर्मी की शुरुआत
पेड़ – पौधे जैसे मौन हों
संध्या में हवाओं का सिहरन
भर देती आहापन
परंतु आधुनिकता ने ली जगह
घर में बैठे
बाहर जाने की फुरसत कहाँ
लालिमा से
पूरा आसमान लाल
कोई संकेत,
भयावह दृश्य का
चिड़ियों का वापस लौटना
अब कहाँ
गोधूलि बेला कहाँ रही
स्वच्छ वातावरण
मोटरों व चिमनियों के धुएँ ने ले लिया
पता नहीं चलता
कब संध्या
कब निशा
कब प्रातः
सभी व्यस्त जो हैं
प्रकृति को निहारने वाला कोई नहीं
व्यस्तता – व्यस्तता ने ली जगह
सूर्यास्त हुआ
रात हो चली।
सोनी सिंह
बोकारो(झारखंड)