संध्या की गोद में
** संध्या की गोद में (ग़ज़ल) **
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संध्या की गोद में धूप समाई है,
दिन बीता जा रहा बात बताई है।
पंछी भी नीड़ में लौट रहे हैं अब,
कलरव देने लगा शोर सुनाई है।
घर से बाहर गए लोग सरायों में
वापिस घर लौटते याद सताई है।
ये संध्याकाल लम्हें न चला जाए,
धीमा सा लाल दे सूर्य दिखाई है।
मनसीरत सांय पी घूंट शराबी है,
होने लगती किसी साथ लड़ाई है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
में साग सगाई है।