संदूक पुरानी यादों का!
नयी यादों का पिटारा तो लिए घूमता हूँ
उन्हें मैं अक्सर उलटता पलटता रहता हूँ
पिटारे को मैं झाड़ता पोंछता भी रहता हूँ
उन यादों को धूप हवा लगवाता रहता हूँ!
मगर मेरी पुरानी यादों की भी कमी नहीं
बड़ा सा संदूक है मेरे पास उन यादों का
दिल के किसी अंधेरे कोने में रखा है मैंने
ख़ासा भारी है अक्सर बन्द पड़ा रहता है!
हर जगह उठाए घूमना मुमकिन भी नहीं
वो संदूक रोज़ रोज़ खुलता भी कहाँ है
गर्द की परतें जमी नज़र आती हैं उसपर
अक्सर वक़्त का दीमक दिखाई देता है!
दिल की कोई टीस संदूक खोल देती है
जब पुराने ज़ख़्म कोई कुरेद देता है मेरे
या फिर कुछ मीठी यादों के झोंके कभी
लाएँ उमड़ते जज़्बात संदूक की जेर मुझे!
अक्सर सोचा अब संदूक खोलता ही रहूँ
झाड़ू पोंछूँ यादों को हवा मैं लगवाता रहूँ
देखूँ उमड़ते सवालों के कोई जबाब मिलें
शायद भटकते जज़्बात का ये तूफ़ान टले!