संदली सी सांझ में, ज़हन सफ़ेद-कागज़ के नाव बनाये।
संदली सी सांझ में, ज़हन सफ़ेद-कागज़ की नाव बनाये,
बहने दे मुझे छाँव में तेरे, एक छोटे गलियारे से कहता जाए।
कभी बादलों का आभार जताये, कि सृजन में उसका साथ निभाए ,
तो कभी बूंदों के संग मुस्काये, जो खुद दरिया उसके लिए बन जाए।
सपनों का मेरे भार उठाये, ठहरे पानी से लाड लगाए,
जब भी हिचकोलों से डगमगाए, साँसें मेरी रुक सी जाए।
जो मन कल्पनाओं को पंख दे जाए, तो उस नाव पर मुझे चुपके से बिठाये,
लहरों को छूकर आँखें भर जाये, और यादें विस्मृत-धड़कनों को सहलाये।
जब नए सफर की आस रंग लाये, कितना कुछ पीछे छूटता नज़र आये,
कभी लगे ये नाव मांझी है चलाये, तो कभी तूफां हर भ्रम को मिटाये।
जब लहरें इसकी गति को थकाए, मन साहिलों को देख ललचाये,
पर गतिशून्यता से अस्तित्व घबराये, कि दुनिया किनारों की मुझे ना भाये।
यूँ सांझ रात्रि की बाहों में समाये, आसमान सितारों की बस्ती है बसाये,
चाँद मेरी नाव को निःशब्द बहाये, और किनारों पर कोई सारथी विरह-गीत सुनाये।