संत सत् कबीर साहेब सत्-आदर्श हैं,
दुनिया अगर मेला है,
फिर कौन अनुशासन का रेला है,
कौन कहे क्यों पूछे,
क्यों अकेला है,
आत्मरक्षा और सेवा का झमेला है,
.
दो दिनों का मेला है,
फिर तू क्यों अकेला है,
आया था बन मुसाफिर,
क्यों सराय में घूसेला है,
.
उठ जाग मुसाफिर,
सफर पर नहीं अकेला है,
पथ है पथिक है,
कंटक मिल सकते है,
होश से ज्योति जोड़,
ध्यान से मिला कदम,
.
मंजिल सबकी एक है,
साधन सबके अलग-अलग,
जो माँगे मदद उनको देना है,
जो दिया सो दिया,
उल्टा क्या लेना है,
.
आगे बढ़ रख कदम,
क्या धीमे कौन तेज है,
महेंद्र
उस एक में सबको मिल जाना है,
.
प्रेरणा मिली संत सत् कबीर साहेब के इस दोहे और उनकी आदर्श झलक से
.
कबीर भाषा अटपटी,
झटपट लखि न जाय,
जो झटपट लख जाय,
सब खटपट मिट जाए,
भावार्थ:-
जीवन प्रेम अपने पराये,
इन सबको समझना,
इतना आसान नहीं है,
जो समझ गया,
उसके लिए ये सब,
व्यवहार मुश्किल नहीं हैं,