संत-संन्यासी
यहाँ पर हूँ… वहाँ पर हूँ… वहाँ पर हूँ… वहाँ पर हूँ
अकेले में मैं अक्सर सोचता हूँ मैं कहाँ पर हूँ
कभी लगता मुझे ऐसा कि मैं तो इस ज़मीं पर हूँ
कभी लगता मुझे ऐसा कि मैं तो आस्मां पर हूँ
मैं कोई संत-संन्यासी नहीं हूँ जो कहे सबसे
कि बच्चा क्या कहूँ तुमसे मज़े में हूँ जहाँ पर हूँ
मुझे ऐसा नहीं मिलता है कोई जो कि बतलाये
कि अपने जिस्म के अंदर मैं इस पल अब, यहाँ पर हूँ
मेरे अंदर कोई अक्सर यही आवाज़ देता है
अभी पहुँचा, अभी आया मैं बिल्कुल आस्तां’ पर हूँ
शिवकुमार बिलगरामी