चिड़िया घर की
‘ह्रदय को छू लेने वाली पूर्ण काल्पनिक कहानी ”
इलाहबाद बीच शहर के एक पुराने मोहल्ले की तंग गली में बने आलीशान मकान की छत पर धूप सेक रहे बूढ़े दंपति अपने बुढ़ापे की एक मात्र सहारा अपनी बेटी ‘आल्या’ की मौत के उस हादसे के बारे में सोच रहे थे उन्हें अच्छी तरह वह साल २०१२ की दिवाली का दिन याद है, आखिर उस दिन को कैसे भूल सकते है जिस दिन ने उनके पूरे जीवन में अँधेरा कर दिया हो | दिवाली के ठीक एक दिन पहले ‘आल्या’ बेंगलुरू से घर अपने मम्मी-पापा के साथ दिवाली मनाने बड़ी मुश्किल से आ पायी थी, क्योंकि उसका एम्.बी.बी.एस. का आखिरी समिस्टर चल रहा था जिसकी तैयारी जोरों से चल रही थी लेकिन मम्मी-पापा को जो सरप्राइज देना था, इसलिए वह मम्मी-पापा के पास थी | ठीक दिवाली वाले दिन किस तरह से सुबह जल्दी उठकर नहाधोकर तैयार हो वह अपनी माँ का हाथ बटाने रसोईघर में घुस गयी थी और उस दिन मन पसंद गाजर का हलवा भी नाश्ते के साथ बनाया था | नाश्ते के बाद ही वह मम्मी-पापा को दिवालीकी खरीदारी कराने शहर के पुराने और मशहूर बाजार(चौक) लेकर गई | वहाँ उसने घर के जरुरी सामानों के साथ पूजा का सामान भी ख़रीदा और जिद करके मम्मी के लिए साड़ी और पापा के लिए कुरता-पाजामा दिवाली की पूजा पर पहनने के लिए लिया, लेकिन अपने लिए कुछ भी नहीं लिया था यह देख कर पापा ने उसके लिए एक बहुत प्यारा उसके पसंदीदा नीलेरंग का जरी वाला सूट जबरन ख़रीदा सभी ख़ुशी-ख़ुशी कार में बैठ कर घर आये कार आल्या ही चला रही थी | घर आकर आल्या ने अपनी माँ से पेट में दर्द होने की शिकायत की माँ ने कहा की वह आराम कर ले आल्या तक़रीबन दो बजे के आस-पास दोपहर का भोजन करके अपने कमरे में आराम करने चली गई |जब शाम हो गई और आल्या अपने कमरे से बहार नही आयी तो माँ ने तकरीबन छ: बजे उसे आवाज लगाई- “बेटी आज सोती ही रहेगी क्या ? उठ, देख शाम हो गई है | बहुत सारा काम है, दीपक भी जलाने हैं और शाम को सोना अच्छी बात नहीं होती |” बेचारी माँ को क्या पता था की उसकी लाड़ली सो ही नहीं रही है, बल्कि सदा के लिए फिर कभी न उठने वाली नींद की गोद में सो गई है | कई बार लगातार आवाज देने के बाद भी बाहर न आने पर माँ थोड़ा घबराई, क्योंकि पहली बार ऐसा हुआ था कि माँ ने आवाज लगाई हो और आल्या ने इतनी देर आने में की हो | माँ का माथा ठनका चाय का ट्रे खाने की मेज पर छोड़कर वह आल्या के कमरे में गई | आल्या को हिलाकर कहने लगी बेटा उठ बहुत काम है,तभी आल्या का सिर एक तरफ लुढ़क गया माँ को अनहोनी की आशंका ने घेर लिया भगवान को मान मनौती करते जोर से चीखीआल्या के पापा ! जल्दी आओ, चीख सुनकर आल्या के पापा तुरंत कमरे में आ गये उन्होंने आल्या के चेहरे को ध्यान से देखा चेहरे पर मुस्कराहट थी लेकिन मुस्कराहट बिखेरने वाला शरीर ठंठा पड़ गया था,शाम के तकरीबन साढ़े-छ: या सात बजे का समय था बाहर सभी के घर दीप जलाए जा रहे थे, लेकिन आल्या के घर का दीपक सदा-सदा के लिए बुझ चुका था | आल्या के पिता की बूढी हड्डियों में न जाने कहाँ से जान आगई थी वह आल्या को उठा कर कार के पास ले आए माँ ने कार का दरवाजा खोला आल्या को कार की पिछली सीट पर लिटा कर माँ ने गोद में सिर रख लिया और लाखों मन्नते भगवान से करने लगी | पापा ‘पं.राजाराम’ जो कारचलाने से डरते थे वे ही आज कार को सत्तर-अस्सी की रफ़्तार से बीच शहर में चलते हुए ‘मेडिकल-काँलेज’ ले आये वहाँ आल्या को मृत घोषित कर दिया गया | मम्मी-पापा की चहकने वाली चिड़िया ने अपना वसेरा बदल लिया था | माँ फूट-फूट कर रो रही थी, लेकिन पं.राजाराम के चेहरे पर एक सिकन ना आरही थी न जाने वे अपने आप को कठोर दिखाने का प्रयास कर रहे थे या कुछ और था | तभी एक-एक पं.राजारामउठे और मेडिकल-काँलेज के प्रिंसिपल के कमरे में गए, उन्हें एक कठोर निर्णय सुनाया :- “मेरी बेटी भविष्य की होने वालीडॉक्टरथी,मैं उसकी मेहनत व्यर्थ नहीं जाने दूंगा वह एक सच्ची समाज सेविका थी, मैं अपनी बेटी के शरीर के अंगों का दान अपनी इच्छा से करना चाहता हूँ ताकि मेरी बेटी की आँखे दूसरे को रोशनी दे सके |” हालाँकि माँ इस निर्णय के खिलाफ थी लेकिन पं.राजाराम के समझाने से मान गयी | इस तरह आल्या के शारीर के अंग आँखे,किडनी, लीवर आदि जो उत्तम अवस्था में थे उसे निकाल लिया गया और शव को दूसरे दिन दे दिया गया | आल्या इस दुनिया को छोड़कर जा चुकी थी लेकिन उसके पिता के ‘अंग-दान’ के निर्णय से आल्या के अंगों से कई लोगों को नयी जिंदगी मिलने वाली थी | आल्या के मृत शरीर को ‘तेलियरगंज घाट’ पर चिता के हवाले करके उसकी अस्थियों को माँ गँगा की गोद में प्रवाहित कर दिया गया | तभी छत पर ‘दैनिक-जागरण’ समाचार पत्र फेरी वाले ने फेका उसकी आवाज से बूढ़े पं.राजाराम का ध्यान भंग हुआ | एक गहरी साँस लेते हुए उठे, और समाचार-पत्र लेकर उसकी मुख्य लाईनें पढ़ने लगे |
पं. कृष्ण कुमार शर्मा “सुमित”