संतोष
कुंडलिनी
वैभव पा कर क्या करे, जब है मृत्यु विराम।
खा ले सुख की रोटियां, हो जीवन सुख धाम।
हो जीवन सुख धाम, नित्य हों नूतन कलरव।
है मन का संतोष, मनुज का सच्चा वैभव।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ, सबलगढ(म.प्र.)