#कविता//पीड़ा कोई आह नहीं (चौपाई-दोहा छंद)
#चौपाइयाँ/दोहे
छिन सके नहीं प्यार हमारा।
हमने खुद ही सब पर वारा।।
मिलनसार है सीरत अपनी।
मिलके खिलती सूरत अपनी।।
घोर निराशा मिट जाएगी।
इच्छा जब मुँह की खाएगी।
भावुकता में मन खो जाना।
हाथ लगे फिर तो पछताना।।
मधुर भावना नित्य बनाता।
सुरभियुक्त मन को मैं पाता।।
वितरण करता अपनी चाहत।
लज्जित होती मुझसे आफ़त।।
भूल भविष्य अतीत रहूँ मैं।
उद्गार वर्तमान कहूँ मैं।।
कस्तूरी की चाह नहीं है।
पीड़ा कोई आह नहीं है।।
तुलना सीखी ही नहीं , चले फ़र्ज़ की राह।
मिले सभी से प्रेम से , सत्यकथन की वाह।।
मंदिर मस्ज़िद एक किनारे।
भूला हूँ गिरजा गुरुद्वारे।।
जीव सभी हैं उसको प्यारे।
उसके इनमें दिखें नज़ारे।।
विपदा देने हरने वाला।
तुझमें ही सब करने वाला।।
घोर उदासी जो छाई है।
याद दिलाने कुछ आई है।।
गगन घटाएँ देकर जाएँ।
धरती मन जल से बहलाएँ।।
यह धरती लेती देती है।
समझ संतुलन की खेती है।।
मनुज बना पथ भटक लुटेरा।
निश्चित नहीं शाम सवेरा।।
अपने में ऐंठा चलता है।
भूला समय क्षण बदलता है।।
औरों के पथ ख़ार हों , अपने पथ में फूल।
सोच यही मन दुख भरे , तोड़े सभी उसूल।।
#आर.एस. ‘प्रीतम