संताप
हर मनुष्य के जीवन में,
उनके नन्हे से दिल में,
कोई न कोई संताप होना जरूरी है ।
यह उसकी नियति है ,
या पूर्व जन्म का प्रारब्ध है ,
संताप के रूप में कर्मफल भुगतना जरूरी है ।
बचपन में पढ़ाई का ,
जवानी में पहले नौकरी फिर ,
अच्छे जीवन साथी को ढूढने का ,
और वृद्धावस्था में पेंशन और शारीरिक लाचारी का ,
संताप होना जरूरी है ।
अरमान अधिक हो या कम,
सपने बड़े हो या छोटे ,
पूरे ना हो सके किसी भी कारण,
तो नसीब को कोसना जरूरी है ।
कभी भगवान से करें शिकायत ,
तो कभी अभिभावकों से करें जवाब तलब,
आखिर कौन जिम्मेदार है इस संताप का ?
यह सवाल किस्से करें ?
लेकिन आंसू और आहें तो पूछती है ,
यह सवाल मन मस्तिष्क में उठना जरूरी है ।
छोटी सी हो या बड़ी जिंदगी ,
मगर संताप की मात्रा तो कम नहीं।
क्या है ऐसा इंसान जो कहे,
उसे कोई जहां में गम नहीं।
चंद सांसों पर क्या इसका पहरा इतना जरूरी है ?