संताप
संताप तुमसे बिछड़ने का नहीं
क्यों मिली थी तुमसे कभी
बस इसका है
संताप तुम्हारे धोखे पर नहीं
अपने विश्वास पर है
सन्ताप तुम्हारे प्यार पर नहीं
अपने प्यार पर है
संताप ऐतबार पर नहीं
इनकार पर नहीं
पाने पर नहीं
गंवाने पर नहीं
दूरियों पर नहीं
नजदीकियों पर नहीं
बातों पर नहीं
वादों पर नहीं
झूठ पर नहीं
सच पर नहीं
वक़्त पर नहीं
भाग्य पर नहीं
संताप तो है बस
अपने अविवेकी होने पर
दम्भ से जोड़ती थी
जिससे खुद को
उस कड़ी के टूटने पर
संताप संताप संताप
के सिवा कुछ नहीं हासिल है
अब बता ज़िन्दगी
दूर कितनी मंज़िल है
15-04-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद