संतान का कर्तव्य
मात-पिता इस धरती पर,
ईश्वर की छवि दिखलाते हैं।
संतान का पालन करते हैं,
हर कष्ट को सह जाते हैं।
संस्कारों की देते शिक्षा,
ज्ञान का पाठ पढ़ाते हैं।
बच्चों की मुस्कान देखकर,
संघर्ष भी भूल जाते हैं।
तुम भूले कर्तव्य मगर,
वो आशीर्वाद नहीं भूले।
जब तुम कहते कटु वचन,
वो क्षमाशील बन जाते हैं।
ऐसी कैसी चली हवा,
सब आडंबर में खोए हैं।
क्यों भूले मात पिता को,
क्यों बेरुखी दिखलाते हैं।
उनकी शिक्षाएं ग्रहण करो,
वो ज्ञान के भंडार है।
मान-सम्मान दो उनको,
वो प्रेमभाव बरसाते हैं।
समझो अगर कर्तव्य अपने,
वृद्धाश्रम बंद हो जाए।
साथ रहें जो मात-पिता,
घर देवस्थान बन जाते हैं।
मात-पिता इस धरती पर,
ईश्वर की छवि दिखलाते हैं।
संतान का पालन करते हैं,
हर कष्ट को सह जाते हैं।
(स्वरचित एवं मौलिक)
शालिनी शर्मा”स्वर्णिम”
इटावा, उत्तर प्रदेश