संजोग
● संजोग
तुझे खोने – पाने कीे भागदौड़ में ।
आख़िर पा ही लिया आशिकों की हौड़ में।।
पता था तू सबसे जुदा है,
गिनती कँहा तेरी लाख – करोड़ में ।।
तमाम साजिशों के बावजूद आख़िर जीत ही गया मैं,
दरमियां रिश्तों के गठजोड़ में ।।
मालूम था तू मुझसे लाख गुना बेहतर है,
मैं भी कमतर नही था तेरे तोड़ में ।
मेरी मोहब्बत और तेरे ऐतबार का शुक्रिया
आखिर पा ही लिया तुम्हें थाम – छोड़ में ।
हमारा मिलना एक संजोग था,
अब मिलेंगे सदा हम हर जन्म – हर मोड़ में ।
✍✍ देवेंद्र