संघातों में सदा अविचल होना !
संघातों में सदा अविचल होना !
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तुम वीरता के दृढ़ प्रतिमान ,
कभी नहीं धीरज खोना !
कंटक राहें हों दुर्निवार ,
न भयभीत कहीं रुकना-झुकना !
तुम वीर प्रहरी पुण्यभूमि के ,
अनंत शक्ति संवाहक होना ;
तूफान मिले विस्फोट मिले ,
अडिग अटल अविचल होना ।
तुम सभ्यता के पुरातन दृढ़ स्तम्भ ,
अनन्त संस्कृतियों के ,चिर-संवाहक होना ;
घात-प्रतिघात मिले प्रतिपल ,
संघातों में न कभी रोना-धोना !
तुम अजेय हो धर्मरथी ,
पीड़ितों के प्राण रक्षक होना ,
क्रूर आक्रांताओं के , दु:सह प्रहार में तत्क्षण;
सदा विपत्ति संताप संत्रास हरना !
अखण्ड भारत अमर रहे !
✍? आलोक पाण्डेय
(वाराणसी,भारतभूमि)
पौष कृष्ण तृतीया तदुपरांत चतुर्थी ।