संघर्ष
जिग्नेश के चार बहनों में सबसे छोटा था चार बेटियों की विवाह की चिंता और उनकी शिक्षा दीक्षा और जिग्नेश की पढ़ाई आमदनी के नाम पर सिर्फ छोटी सी सब्जी भाजी की दुकान जिग्नेश के बापू दौलत राम बहुत जीवट के आदमी थे इतनी जिम्मीदारियो के बाद भी ईश्वर के प्रति आस्थावान और अपने कार्य एव जिम्मीदारियो के प्रति समर्पित व्यक्ति थे ।दौलत राम के पिता श्रीफल ने बेटे दौलत राम से कहा कि बेटा गांव में खेती बारी तो है नही आप शहर जाओ और बच्चों कि शिक्षा पर ध्यान दो सम्भव है अगली पीढ़ी को जलालत और जिल्लत से मुक्ति मिल जाये दौलत राम चारो बेटियों और जिग्नेश को लेकर कोलकाता चले गए ।नया शहर ना कोई जान पहचान ना कोई ठौर ठिकाना जाए तो जाए कहां उनके पॉकेट में मात्र सौ रुपये थे बच्चो को लेकर वह एक ऐसी जगह गए जहाँ देश के कोने कोने से आये मजदूर लोग सड़क के किनारे रहते थे और उन्होंने सौ रुपये से धनियां खरीदा और दिनभर में उंसे बेचा सौ रुपये की धनियां से व्यपार शुरू किया । बच्चों को एक टाइम दस पंद्रह रुपये का शतुआ खरीद कर लेते और उसमें नमक मिलाकर घोल कर पिलाते और खुले आकाश के नीचे सो जाते एक महीने में बच्चों एव उनकी शतुआ के एक गिलास घोल पर जीने की आदत पड़ गयी ।उनकी मेहनत रंग लाई और सौ रुपये की धनियां की पूंजी आप डेढ़ हज़ार हो चुकी थी अब दौलत राम सर पर टोकरी लेकर सब्जियां बेचते और आप शतुआ छोड़कर रोटियां एक वक्त की मिलने लगी लगभग छ माह में दौलत राम ने थोड़ी और तरक्की कर ली और अब वे सब्जियां ठेले पर लेकर मोहल्ले मोहल्ले बेचने लगे और आय इतनी होने लगी कि बच्चों को दो जून की रोटी नसीब हो सके। दौलत राम कि मेहनत को देखकर जब बेटियां बच्चे घबराने लगते तब दौलत राम यही कहते बेटे जिंदगी इम्तेहान लेती है जो टूटू गया जिंदगी के इम्तहानों से समझो हार गया जिंदगी से और जिंदा ही मर गया इसलिये घबराना नही चाहिये देखो गांव से हम लोग आए थे तब हम लोंगो के पास दो जून की रोटी नही थी अब कम से कम दो जून की रोटी है रहने के लिए सड़क के किनारे गंदे नाले पर ही सही एक छोपडी है। जिंदगी की परिक्षयाए ओखली है और समस्याएं मूसल जब इंसान के रूप में पैदा होते है तभी से ओखली में सर लगभग सभी इंसानों का रहता है जब ओखली में सर जीवन का सच है तो मुसलो से क्या डरना ?मतलब जीवन मे संघर्ष की मार से क्या डरना #जब ओखली में सर डालकर भगवान ने ही भेजा है तो समस्याओं के मूसल से क्या डरना# दौलत राम बेशक पढ़े लिखे व्यक्ति नही थे किंतु उनको उनके पिता श्रीफल ने जीवन कि सच्चाई और उसके उतार चढ़ाव की शिक्षा से परिपूर्ण करते हुए एक मजबूत इंसान अवश्य बनाया था जो उन्हें पिता की शिक्षा के रूप में बहुत बड़ी शिक्षा विरासत के रूप में मिली थी जो उन्हें कभी भी झुकने एव टूटने नही देती ना ही अनैतिक या अमर्यादित होने देती ।दौलत राम को पांच वर्ष कलकत्ता आये हो गए थे वो गांव नही गए थे उनके पिता श्रीफल ने कह भी रखा था गांव तूम तभी लौटना जब तुम जीवन मे किसी ऊंचाई की मुकाम पर हो केवल चिठ्ठी पत्री से ही पिता रामफल का हाल चाल मिल जाता और कुछ पैसे बचते तो उन्हें दौलत राम पिता रामफल को भेज देते धीरे धीरे दौलत राम को कलकत्ता आये पंद्रह वर्ष हो चुके थे वे किराए के एक छोटे से मकान में रहते उनकी चारो बेटियां सुचिता बनिता रचिता महिमा ने भी स्नातक स्नातकोत्तर आदि की शिक्षा पूर्ण कर रही थी जिग्नेश भी स्नातक में पढ़ रहा था ।सही है जीवन मे ईश्वर किसी को कुछ भी देने से पूर्व उसकी योग्यता की कठिन परीक्षा अवश्य लेता है दौलत राम के साथ भी ऐसा ही हुआ वह प्रतिदिन की भांति सुबह तीन बजे उठकर स्नान ध्यान के बाद ज्यो ही सब्जी मंडी के लिए निकले तभी पीछे से आती एक असंतुलित लारी ने उन्हें टक्कर मार दी जिसके मार से दौलत राम सड़क के किनारे बुरी तरह जख्मी होकर बेहोश हो गए और बहुत देर तक सुन सान सड़क पर पड़े रहे जब सुबह की पौ फटने को हुई और किसी राहगीर की उन पर नज़र पड़ी तब उसने नजदीक के पुलिस स्टेशन पर इस बाबत सूचना दी पुलिस ने दौलत राम को तुरंत अस्पताल में दाखिल कराया चूंकि दौलत राम वर्षो से उसी रास्ते प्रति दिन सुबह सब्जी खरीदने जाते अतः आते जाते उन्हें जानने पहचानने वाले लोग थे दौलत राम की शिनाख्त में कोई कठिनाई नही हुये लग्भग सात आठ बजे उनके बच्चो को दुर्घटना और पिता के गम्भीर अवस्था की जानकारी हो गयी ।फ़ौरन बेटियां सुचिता बनिता रचिता महिमा और जिग्नेश अस्पताल पहुंचे डॉ ने उन्हें बताया कि उनके पिता की हालत बहुत गम्भीर है दोनों जंघे टूट चुके है और सर में गम्भीर चोट है जिसके कारण उनके बचने की संभावनाएं कम है डॉ सबसे पहले उनके सर के चोट का ही इलाज कर रहे थे सुचिता बनिता रचिता महीमा और जिग्नेश पर जैसे आफत का पहाड़ ही टूट गया लेकिन पिता दौलत राम की शिक्षा जिंदगी एक ओखली ही और समस्याएं मूसल और दोनों से सामना ही जीवन का संघर्ष सच है अतः सामने खड़ी समस्याओं का सामना करना चाहिए समस्याओं से मूंह छुपाने या भगने से काम नही चलता समस्याएं बढ़ती जाती है समस्याओं से टकराने के प्रतिघर्षन से जो चिंगारी निकलती है वही जीवन के अंधकार में रास्ता दिखाती है ।जिग्नेश और उसकी बहनों को पिता की शिक्षा ने हिम्मत दिया जिग्नेश स्वंय सुबह अपने पिता जगह सब्जी मंडी जाता दिन में तीन बजे तक सब्जी बेचता और पुनः अस्पताल चला जाता और रात में तीन बजे तक अस्पताल रहता ।बहने ट्यूशन कोचिंग पढ़ाती और पिता दौलत राम के इलाज के लिए हर सम्भव प्यायस कर रही थी दौलत राम को कोमा में गए डेढ़ वर्ष हो चुके थे कोई इलाज कारगर नही हो रहा था इसी बीच जिग्नेश के भारतीय प्रशासनिक परीक्षा के प्री एग्जाम का परिणाम आया वह मायूस आंखों में आंसू लिए पिता के पास खड़ा डॉ मृणाल घोष से बता रहा था डॉ साहब बापू यदि यह खुशी महसूस कर रहे होते तो शायद उनके पंख लग गए होते और आसमान में खुशियों की कल्पना परिकल्पना में उड़ रहे होते ।डॉ मृणाल घोष ने सांत्वना देते हुए कहा जिग्नेश हिम्मत से काम लो सब अच्छा ही होगा तभी जिग्नेश कि आंखों से बहते आंसुओ की बूंदे दौलत राम के सर पर गिरने लगा दौलत राम ने बड़ी लम्बी कराह ली डॉ घोष ने कहा कमाल है जो काम डेढ़ वर्षो से बड़े से बड़े डॉक्टरो के इलाज अनुभव नही कर सके बेटे कि एक बूंद आंसू ने कर दिया दौलत राम जी को सेंस आ रहा है सम्भव है कोमा से एग्जिट हो जाये। तुरंत ही डॉ मृणाल घोष ने अनिवार्य इलाज की त्वरित कार्यवाही शुरू की दो दिन में ही दौलत राम जी के इलाज के परिणाम बहुत जबजस्त दिखने लगे कोमा से बाहर आ गए। चिकित्सा कर रहे डॉक्टरों के लिए किसी आश्चर्य से कम नही था दौलत राम के होश में आने के बाद उनकी टूटे जांघो के स्थायी इलाज शुरू हुए इस बीच जिग्नेश ने भारतीय प्रशासनिक सेवा के मुख्य परीक्षा की तैयारी बहुत मेहनत से किया औऱ वह मेरिट में आया लगभग सात आठ महीने में दौलत राम चलने फिरने लायक हो गए और बहुत जल्दी रिकवर करने लगे इधर जिग्नेश ने भारतीय प्रशासनिक सेवा का साक्षात्कार दिया और प्रथम तीन में अखिल भारतीय स्तर पर चयनित हुया जिस दिन जिग्नेश का परिणाम आया दौलत राम अस्पताल से छुट्टी पाकर घर आये सारे मिडिया ने जिग्नेश और उसके पिता दौलत राम के संघर्षो और सफलताओं के गर्व गौरव गान से पटा था ।दौलत राम पूरे परिवार के साथ अपने गांव पूरे पच्चीस वर्ष बाद लौटे पिता राम फल ने बेटे एव पोते पोतियों की सफलता और पीढ़ियों के भविष्य के निर्माण में बेटे के संघर्ष को गले लगाया ।जिग्नेश प्रशिक्षण के उपरांत जब पहली पोस्टिंग में कार्यभार ग्रहण करने गया तब उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि आपके कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मीदारियो का बोझ है भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन होने के लिए एक बाए कठिन परिश्रम करना पड़ता है लेकिन इसकी जिम्मीदारियो के निर्वहन के लिए प्रतिदिन कठिन परिश्रम करना होगा जिग्नेश बोला सर #जब ओखली में सर डाल ही दिया है तो मूसल से क्या डरना# पूरे वातावरण में उल्लास के आत्मविश्वास की लहर दौड़ गयी।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।