‘संघर्ष’
ये जीवन ही संघर्ष है,मान मत तू हार।
बालपन से संग अपने,संकटों के तार।।
एक शिशु भरने को पेट,करता रुदन खूब।
भूमि में जब गढे़ गहरी, …हरी रहती दूब।।
दौड़कर मृग तीव्रता से,….बचा लेता प्राण।
एकाग्र मन साध लेता, लक्ष्य तक एक बाण।।
वक साधना करे कठोर,तब मिल सके भोज,
एक पाँव रखे धरा पर,निस दिन करे खोज।।
घोरअनुसंधान करते,हो सफल तब काम।
तंद्रा त्याग कर सके जो, हो उसीका नाम।।
कुशल कौशल में बनोगे,प्रण हृदय में धार।
श्रम आलंब ले चले तो,फिर न होगी हार।।
छोड़ दो सुख ब्रह्मचर्य में,करो सतत् प्रयास।
जीवन में आनन्द की तब,होगी पूर्ण आस।।
ताप से कनक पाए चमक,बिके ऊँचे मोल।
चिताग्रता से करें काम,मधुर रखिए बोल।।
स्वतंत्र देश तब हुआ जब,कटे सहस्रों शीश।
सूरज के छुप जाने तक, तक रहा रजनीश।।
चहुँ दिशा में फैले चमक, हो जगत में नाम।।
दृढ़ प्रतिज्ञा से हि जग में,पूर्ण होते काम।
-गोदाम्बरी नेगी
मौलिक, स्वरचित एवं अप्रकाशित रचना©®
हरिद्वार (उत्तराखंड)