संघर्ष
“संघर्ष कितना भी कठिन हो ,
परिणाम कितना भी कुटिल हो !
दुःख और संताप से जीवन भरा हो ,
या संघर्षरत मन मूर्छित सा पड़ा हो !
भाग्य को ही कोसके यु ,
जिंदगी को क्यों काटते हो ?
जिंदगी इतनी कठिन है ,
क्यों व्यर्थ भ्रम तुम पालते हो ?
बिना श्रम और साधना के ,
फल को क्यों तुम साधते हो ?
सुप्त बैठी आत्मा से ,
ब्रह्म को तुम चाहते हो !
बिना तप आलोचना के ,
कौन जग में ही बड़ा हो ?
किसने क्या क्या न सहा ,
राम हो या श्याम हो !
विरह ,वेदना हो या ,
समाज का अन्याय हो !
जानकी के भाग्य सा ,
किसका भाग्य क्रूर हो ?
भगवान भी न बच सके ,
नियति के कुचक्र से !
हमारी क्या बिसात है ,
नियति से जो लड़ सके !
अपने पथ के कंटकों को ,
तुम मापना ही छोड़ दो !
ढकेल दे जो गर्त में ,
उस सोच को ही छोड़ दो !
मिटा दे जो स्वाभिमान ,
उस मान को ही छोड़ दो !
नाश कर दे जो चरित्र ,
उस स्वभाव को ही छोड़ दो !
वक्त कितना भी रुलाये ,
राम पे तुम छोड़ दो !
कर्मयोगी की तरह तुम ,
फल की चिंता छोड़ दो !”