संघर्ष….विभीषण और जयचंद का
एक अजीब सा वातावरण चारों तरफ पल रहा है।
कोई खुद को राम और किसी को रावण कह रहा है।
गुट बने है कुछ विभीषण कुछ जयचंद तो कुछ तटस्थ खड़ें है।
जयचंद और विभीषण दोनो परिवार और राष्ट्र के खिलाफ खड़े है।
एक राम का दिया साथ एक गोरी का,
पर, दोनों में किसको इतिहास ने माफ किया है।
विभीषण ने तो हमारे भगवान राम का जीवन संवारा था,
जयचंद दे गोरी का संग भारतवर्ष का मान-मर्दन करवाया था।
विभीषण बुराई के खिलाफ अच्छाई से अपना नाता जोड़ा था,
सच्चाई के लिए वो परिवार में अकेला ही खडा था।
जयचंद निजी हुनक में विरोध में खड़ा था,
सत्ता और स्वार्थ हेतु मोहम्मद गोरी संग जा मिला था।
एक सृजन के लिए तो दूसरा विनाश के लिए लड़ा था।
विभीषण नहीं होता तो भगवान राम हार ही जाते।
वो बुराई पर अच्छाई का प्रतीक कैसे बन पाते।
जयचंद ने असत्य का तो विभीषण ने सत्य का साथ दिया,
तय करें किसका बुराई से किसका अच्छाई से नाता है।
दे साथ सत्य और राम का
विभीषण कल और आज भी बुरा बना पड़ा है।
दूर खड़े जयचंदो की टोली अट्टाहास लगा रहा है।
सेनाएँ सज चुकी है हो रही राजनैतिक उठापटक,
चल रहे शब्दबाण हो रहे है संघर्ष ।
जयचंद हो या मोहमद गोरी, भले क्षणिक जीत पर अट्टहास लगा लें,
इतिहास प्रमाण है,दोनो का घृणित अंत तय है।
बाकी, परिवार की बुराइयों से लडने वाला विभीषण आज भी मजबूती से अकेला ही खडा है।