संघर्ष की शुरुआत / लवकुश यादव “अज़ल”
राहें मुश्किल डगर कठिन है लेकिन,
पथिक तनिक तुझे भी संभलना होगा।
शूलों से है भरी पड़ी ये डगर तुम्हारी,
सहज संभल कर आगे बढ़ना होगा।।
नामुमकिन को मुमकिन करने खातिर,
तुम्हें संघर्ष अधिक धरा पर करना होगा।
तुमने संघर्षों का आदी खुद को पाया है,
घी के दीपक को भी धीरे धीरे जलना होगा।।
सुबह शाम सर्द को छोड़ बसेरा देखो,
वह भी अकेला ये सब कैसे करता होगा।
राहें मुश्किल डगर कठिन है लेकिन,
पथिक तनिक तुझे भी संभलना होगा।।
हैं बाधाएं अनन्त राहों पर अज़ल यहाँ,
खुद ही खुद को अंक में तुमको भरना होगा।
आये हो वीराने में महफ़िल को सजाने तुम,
आफ़ताब के जैसे पहले तुमको जलना होगा।।
लवकुश यादव “अज़ल”
अमेठी, उत्तर प्रदेश